मीनू शाह लिखती हैं कि एक गुजराती लड़की, सातवीं इंद्री के साथ पैदा होती है, जिसे जीवन के लिए एक प्रशंसनीय व्यवहार कहा जाता है
आपके साथियों की निंदा को निगलने के लिए; अभिमान, सामाजिक स्थिति में उचित रूप से बोलने की क्षमता; एक मोटी चमड़ी और बहुत मजबूत साहस की आवश्यकता होगी। गैर-गुज्जू( पंजु अपवाद के रूप में है), इस स्वीकृति से अचंभित प्रतीत होते है कि उन्होंने आज तक एक ऐसी महिला, जो चुटकुलों के साथ तेज है; जिसे कभी भी परेशान नहीं किया जा सकता, उसके रास्ते से गुजरने की आज तक कोशिश नहीं की है । तो चलिए, मैं आपको यादों की गालियों और एक यात्रा पर ले जाती हूँ, जो आपके गालों पर एक गुलाबी रंगत लाती है और तेज यादाश्त न होने की असमर्थता की स्थाई इच्छा को पूरा करती है।
70 का दशक एक ऐसा युग था, जहां, अभी भी स्वतंत्रता सेनानी पीढ़ी, 15 अगस्त 1947 की आधी रात को हमें कैसे स्वतंत्रता प्राप्त हुई उसकी कहानियों के चार दीवारों में फंसी थी। चूंकि, राष्ट्रपिता, मोहनदास करमचंद गांधी एक गुज्जू थे, इसने स्वतः ही हर गुज्जू घरों में यह विश्वास पैदा किया कि उनका कद बाकी लोगों से ऊँचा है। और उनके लिए, हम Baby Boomers पैदा हुए थे, जिन्हें आसानी से सब कुछ मिल गया था। क्या सचमुच, आसान था? हम लोग संस्कृति और उप-संस्कृति के प्रयोग थे, जो कहीं पीछे छूट गया था, जब अंग्रेज़ी औपनिवेशिक को लात मार कर निकाला गया। हमें पारंपरिक और आभासी पाश्चात्य सभ्यता के बीच में संघर्ष करना पड़ा; जो कि मेरे मामले में, रॉयल कनॉट बोट क्लब और पूना क्लब जैसे प्रतिष्ठित क्लबों की सदस्यता के साथ आया और हमारे जीवन में गैर अस्थानीय भाषा(नॉन-वर्नाक्यूलर) के चेहरे का, आगमन हुआ।
मेरी किशोरावस्था के दिनों में, मुझे लगा कि मैं ज़मींदार थी, क्योंकि मुझे पता था कि ट्विस्ट(नाच) कैसे करते है। ऐसे ही एक शाम की याद, आज भी मेरे अन्दर एक झिझक पैदा करती है। मेरे माता-पिता, जो पारंपरिक और आधुनिक परवरिश के बीच फंसे हुए थे, उन्होंने एक समझौता किया और मुझे ऐसे विद्यालय में भेज दिया जहां सिर्फ लड़कियां(ऑल-गर्ल्स स्कूल) ही थी। मेरी अधिकांश सहपाठी, दो चोटी बनाए; पिनाफॉर कपड़े(जंपर) पहने; हमेशा बेवक़ूफ जैसे हँसने वाली लड़की, अब किशोर डीवा बन गई थी; जो यह जानती थी कि वार्षिक स्कूल समारोह, हमारे अस्तित्व का मुख्य आकर्षण है, सही है ना? हमें एक शाम, लड़कों के साथ जाने की अनुमति मिली– हां, मैंने शरारती शब्द, लड़कों के बीच कहा था, जो कि हमारे अस्तित्व का पूर्ण आकर्षण था। और इससे अधिक एक गुजराती लड़की, जो संयुक्त परिवार में पली-बढ़ी है और अगर आप गुज्जू नहीं है तो यह एक बिन्दु है जहां हमारे रास्ते अलग होते है। सामाजिक जुड़ाव की प्यासी(क्योंकि गुज्जू घर में साधारणतः पार्टी के दृश्य, किसी भी गोपनीयता से परे होते है), मैंने इस बार उनकी आज्ञा नहीं मानने का निश्चय किया और अपने माता-पिता को, मुझे एक ऐसी ही सामाजिक शाम में शामिल होने की अनुमति देने के लिए विवश किया। उनकी हाँ प्राप्त करने के लिए , बड़ों के बीच सामाजिक हस्तक्षेप का आह्वान हुआ। चाचाओं और चाचीओं का एक उन्माद इस चर्चा में जुड़ गया, जैसा कि उनका जीवन एक लोकल ट्रेन के पीछे निरंतर रूप से भागना था, उसी तरह वो युवाओं को पकड़ने और उन्हें सम्भालने को उतारू थे।
अंत में यह निर्णय हुआ कि मैं, सामाजिक शाम में शामिल हो सकती हूं , लेकिन इसमें बहुत सी शर्तें जुड़ी हुई थी(यह बिल्कुल वैसा ही था, जैसे अंग्रेज़ अपनी शर्तों पर आजादी देना चाहते हो)। मेरे शरीर में एड्रेनालिन रस के साथ और भी बहुत कुछ चल रहा था और मैं इस शर्त पर राजी हो गई कि मेरे चाचा और चाची , एक संरक्षक के रूप में मेरे साथ जाएंगे और मैंने बड़ी चतुराई से समझौता किया कि वे अदृश्य रहेंगे। आज भी, जब कोई बिशप स्कूल और 1975 की चर्चा करता है , तो यह याद मुझे डराती है। शाम की शुरुआत, घबराई हुई उत्तेजित लड़कियों, जो अपने राजकुमारों का इंतजार कर रही थी, के साथ हुई (हाँ, उन दिनों सभी लड़कियां, अपने आप को डिज्नी की राजकुमारी समझती थी), जो आगे बढ़ते और लड़कियों को अपने साथ नाचने के लिए पूछते। उस शाम मुझे, मेरा राजकुमार बहुत जल्द मिल गया था। मैं, चबी चेकर्स के मिश्रित गानों पर डांस कर रहीं थी। जब मैं नाचते हुए अपने हाथों को हवा में हिलाने और अपने जूतों को जमीन पर तेजी से पटकने की कोशिश कर रही थी, तभी मुझे एहसास हुआ कि एक मोटा हाथ मेरे पैरों को पकड़े हुए है; मेरा हाथ उसे मारने के लिए उठा, लेकिन एक कुपोषित राजकुमार की तरह मध्य हवा में रुक गया। जिसने मेरे पैरों को पकड़ रखा था, जब मैंने उसकी आवाज़ सुनी, तो वो एक परिचित आवाज थी, जो एक बिना दांत के इंसान की हो सकती थी। घबराए हुए, मैंने जब नीचे देखा तो, मोटी पलकों के बीच से दो बड़ी-बड़ी आंखें मेरी ओर देख रही थी और ‘गोल-गू’, ‘गा-गा’ जैसी गज़ब की आवाज़ निकाल रही थी। मेरे चाचा चाची ने, अंत में अपने बचाव में मुझसे यह सौदेबाजी की कि वो अपने छह महीने के छोटे बच्चे को साथ लाएंगे और उसे हमारी स्कूली छात्राओं के बीच रेंगने के लिए छोड़ देंगे/ बचपन की अजूबता को कभी भी संविधातमक दायित्वों में अंकित नहीं किया गया था। एक लड़की को क्या करना था? सिर ऊपर उठाए , बाहों में बच्चा पकड़े, शिक्षकों और दोस्तों के सामने मुस्कुराते और सिर हिलाते हुए, मैं बॉल रूम से अपने सबसे अच्छे दोस्त की दया और सम्मान के साथ तेजी से बाहर निकल गई।
जीवन में सामाजिक दुर्घटना की एक श्रृंखला बनी रही, जो कभी-कभी डिस्को पार्टी को डांडिया के रूप में बदल देती थी, जिसमें सगे-संबंधियों के बच्चे बिना बुलाए डेरा डालते थे, या खंडाला में कॉलेज का पिकनिक, जिसमें मॉम/ डैड और नौकरों की टोली, जो ढोकला, गटिया और जलेबियाँ परोसते थे, के साथ आश्चर्यचकित उपस्थिति होती थी। यदि आपने मेरी व्यथा को महसूस किया है और यह सोच कर आश्चर्य कर रहे है कि क्या यह जीवन के लिए डर था? ओह, नहीं- आप देखिए कि एक गुज्जू लड़की सातवीं इंद्री के साथ पैदा होती है, जिसे जीवन के लिए एक प्रशंसनीय व्यवहार कहा जाता है।