Saturday, November 23, 2024
spot_img

एअर इंडिया से यात्रा कर रहे हैं?

अपना खाने का डिब्बा साथ ले जाएँ, विक्रम सेठी कहते हैं

कई साल पहले मैं एअर इंडिया से दिल्ली से मुंबई जा रहा था. शाम की फ्लाइट थी. मुझे पिताजी के एक परिचित मिले और उन्होंने पूछा कि क्या मैं मुंबई जा रहा हूँ और मेरे पास कितना सामान है. “केवल एक बैग है” मैंने उन सज्जन से कहा. उन्होंने कहा कि क्यों न हम एक साथ चेक-इन कर लें, क्योंकि उनके पास सामान कुछ ज़्यादा है. मैंने हाँ कर दी और हम दोनों ने एक साथ चेक-इन कर लिया. मैंने अपने लिए एक आइल सीट (पैसेज के साथ वाली) माँगी और दूसरी उनके लिए. 

उन दिनों हवाई यात्रा काफी महँगी हुआ करती थी, और लोग चेक-इन की कतार में किसी मित्र-परिचित को खोजते ताकि अतिरिक्त सामान का शुल्क भरना न पड़े.

अचार का झमेला

हम लोग प्लेन में सवार होकर अपने अपने स्थान पर बैठ गए. इधर उधर की बातचीत करने लगे, ख़ास तौर से यह कि भारतीय हवाई सेवाओं का दर्जा कितना कम है. उन्होंने शिकायत की कि भोजन इतना ख़राब होता है कि उनसे खाया नहीं जाता. मैंने सहमति जताई. विमान ने उड़ान भरी, हम गपशप करते रहे, और उन्होंने दोबारा भोजन की गुणवत्ता के संबंध में शिकायत की. फिर वे असल बात पर आ गए. “फ्लाइट में खाना इतना बेकार होता है कि मैं अपना भोजन साथ लेकर चलता हूँ”.

दिखता तो खाने लायक है – पर सचमुच है क्या?

अपने मेडिकल प्रतिनिधि वाले एक बैग में से उन्होंने स्टेनलेस स्टील का एक गोल डिब्बा निकाला. ढक्कन पर पंजाबी आम के अचार की दो डलियाँ, प्याज़ और दो हरी मिर्चें रखीं. मुझे बड़ा शॉक लगा. उन्होंने ऊपर-ऊपर से पूछा, “तुम कुछ लोगे?” जी नहीं, शुक्रिया, मैंने जवाब दिया… और थोड़ी ही देर में आगे और पीछे की चार-चार पंक्तियों तक पंजाबी आम के चार के गंध लहराने लगी. मैं अपनी किताब के पन्नों के भीतर सिमट के रह जाना चाहता था. विमान में सवार होने से पहले मुझे दो और मित्र भी मिले थे जो उसी फ्लाइट से जा रहे थे. जो कोई हमारी आइल से गुज़रता, उसके चेहरे पर अजीब से भाव होते.

 

सौभाग्य से उसी समय एअरहोस्टेस ने खाना बाँटना शुरु कर दिया. मैंने खाना खा लिया और  सो जाने का ढोंग करने लगा. शायद सचमुच मेरी आँख लग गई होगी, क्योंकि कोई मुझे जगाकर सीट-बेल्ट बाँधने को कह रहा था. विमान लैंड करने पर हमने एक दूसरे को अलविदा किया.

उन दिनों की हवाई यात्रा आज से एकदम अलग हुआ करती थी. आप होशियार होते तो इंडियन एअरलाइंस में किसी की जान-पहचान निकालकर टिकट प्राप्त कर सकते. अधिक सामान का शुल्क भी माफ करवा लेते. एयरलाइंस की नौकरी का बड़ा ऊँचा स्थान था, ख़ासकर शादियाँ करवाने के बाज़ार में. आपको मुफ्त यात्रा का कोटा मिलता था, और जो लोग एअर इंडिया में नौकरी करते वे तो अपने परिवार को विश्व में हर उस जगह ले जा सकते जहाँ एअर इंडिया की उड़ानें जाती थीं.

स्वाद किरकिरा

पिछले दो हफ्तों में मुझे चार बार एअर इंडिया से, एक बार स्पाइस जेट से और एक बार इंडिगो से यात्रा करनी पड़ी. कहना कठिन होगा कि किस एअरलाइन का भोजन दूसरी से ज़्यादा ख़राब था. मैंने एअर इंडिया से मुंबई-दिल्ली की अंतरराष्ट्रीय उड़ान ली. भोजन में क़ीमा-मटर, बीटरूट की टिक्की और मेथी पराठा थे. मेथी का पराठा ऊपर से जला हुआ और भीतर से अधपका था – आप कच्चे आटे का स्वाद चख सकते थे. बीट की टिक्की में बीट कम और ब्रेड अधिक थी. टमाटर की ग्रेवी में थोड़े से मटर और उनसे भी कम क़ीमा, यह था क़ीमा-मटर. सलाद के बजाए इमली की चटनी में पकौड़ी चाट थी जिसपर थोड़ी सी आलू भुजिया छिड़की गई थी. जब आप पकौड़ी बनाते हैं तो उसे तलकर फ्रीज़ करते हैं. परोसने से पहले उसे गरम पानी में डालते हैं ताकि अतिरिक्त तेल निकल जाए. पर यह पकौड़ी चाट तो एकदम बेकार थी. शायद केटरर ने गरम पानी वाला काम किया ही न था. पकौड़ी चबाते ही सारा मुँह बासी तेल से भर गया. और यह क्वालिटी थी बिज़नेस क्लास में परोसे गए भोजन की.

जब विकल्प इतने कम हों तो घर से भोजन ले जाना कुछ ग़लत नहीं होगा

देशी विमान अक्सर घटिया और घिसे-पुराने होते हैं, पर्दे और कुर्सी की गद्दियाँ बदलने लायक, टॉइलेट टूट-फूटी, सीटें ढीली, पूरा अनुभव ही खेदजनक होता है. एअर इंडिया की एक अन्य देशांतर्गत उड़ान में केवल वेजिटेरियन भोजन परोसा गया. मेरी समझ में नहीं आया ये पैसे बचाने का तरीका था या हिंदुत्व का प्रभाव. एक बार उन्होंने नाश्ते में सांबर वड़ा और उपमा दिए. वड़ा खास गर्म नहीं था, चटनी ठीक-ठीक थी, चाय ठंडी थी…लेना है तो लो वाली वृत्ति. एअर इंडिया की कटलरी में लकड़ी के चम्मच होते हैं जो मुश्किल से खाना खाने के अंत तक टिकते हैं. प्लास्टिक के कंटेनर बेहद सस्ते और घटिया, और टिशू पेपर ऐसे जो किसी तीसरे दर्जे के होटल में दिए जाते हों.

 

एक बार एअर इंडिया की एक शाम की फ्लाइट में दाल, चावल और अरबी की सब्ज़ी थी. तीनों उड़ानों में मैंने एअरलाइंस के स्टाफ से बातचीत की और पूछा कि क्या वे भी आए दिन यही खाना खाते हैं. अगर ऐसा है तो उनके पाचन और स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ेगा.

मुख्य होस्टेस ने कहा वह अपना खाना घर से लाती है, इस में से कुछ नहीं खाती. शादीशुदा लड़कों ने कहा वे अपना खाना लाते हैं, एअरलाइंस का खाना नहीं खाते. लड़कियों में से दो बोलीं कि और कोई उपाय नहीं है क्योंकि वे मुंबई से नहीं हैं, इसलिए वे पेइंग गेस्ट के तौर पर रहती हैं जहाँ खाना पकाना संभव नहीं. दो लड़कों ने कहा कि वे यही खाना खाते हैं लेकिन एअर इंडिया ने अब एक डाइटीशियन नियुक्त किया है जिसने बिना नमक के खाने सुझाव दिया है ताकि स्टाफ का वज़न बढ़ने न पाए. मैंने उबली हुई पालक भी चखी जो बिलकुल भद्दी, अस्पताल के भोजन जैसी, एकदम स्वादहीन थी.

शाकाहार के नाम पे चूना लगाना

हमारे एअरपोर्ट तो शानदार हैं, लेकिन विमान में कदम रखते ही क्या हो जाता है?

मेरी अगली यात्रा स्पाइस जेट से थी. एअर होस्टेस ने कहा कि नॉन-वेज भोजन तो समाप्त हो गया है, वह मुझे केवल पनीर शाश्लिक टिक्का दे सकती है; उसमें पनीर के चार छोटेसे टुकड़े थे, तीन गोल कटे आलू के स्लाइस जिनमें पनीर भरा हुआ था. एक टिक्की भी थी जिसमें आलू अधिक था या ब्रेड, मैं जान नहीं पाया. मुझे लगता है उसने झूठ बोला होगा क्योंकि एक बार मैं पहली सीट पर बैठा था तो एअर होस्टेस ने यही कहा था कि नॉन-वेज खत्म हो गया है. मैंने पूछा कि जब मैं सबसे पहले परोसा जाने वाला यात्री हूँ तो ऐसा कैसे हो सकता है.

इंडिगो का भोजन भी कुछ खास नहीं है. कप नूडल्स, बिरयानी, पोहे आदि सभी में काफी मात्रा में प्रिज़रवेटिव होता है. भोजन से कृत्रिम सी गंध आती है, और खाने के लिए सबसे सुरक्षित हैं ‘नटकेस’ नामके टिन में मिलनेवाले काजू/बादाम के पैकेट. एअरलाइन कहती है कि आप इसे घर ले जाकर फिर से इस्तेमाल कर सकते हैं. मुझे लगता है कि पृथ्वी पर     कूड़ा-कर्कट का बोझ बढ़ाने के बजाए वे हमें काग़ज़ के पैकेट में ही काजू दे दिया करें तो बेहतर होगा. ध्यान रहे कि एक कोक और काजू का एक पैकेट आपसे ढाई सौ रुपये ढीले कराता है. देशांतर्गत हवाई क्षेत्र में खान-पान सेवा का मापदंड आख़िर किसकी ज़िम्मेदारी है?

जेट एयरवेज़ का बंद होना दुर्भाग्य की बात है – वे उत्तम भोजन और सेवाएँ प्रदान करते थे. इस समय भारत में विस्तारा सबसे बढ़िया है. भोजन अच्छा होता है, गर्मागर्म, कर्मचारी और सेवा भी उत्तम, और विमान एकदम साफ-सुथरा. दुर्भाग्य से हमारे नागर विमानन मंत्री श्री हरदीप सिंह पुरी देशांतर्गत क्षेत्र में एअरलाइंस द्वारा दी जा रही सेवाओं के स्तर से अनभिज्ञ लगते हैं. कोई उनसे कहे कि वे एक मसखरे कुणाल कामरा द्वारा दूसरे अर्नब गोस्वामी को चिढ़ाने के पचड़े में पड़ें – ये तो उनका पेशा ही है – बल्कि असली मुद्दे यानी भोजन और ग्राहक संतोष की गुणवत्ता पर अपना ध्यान दें.

दिखता तो खाने लायक है – पर सचमुच है क्या?

आख़िरमें, किंगफ़िशर को हानि हुई. वे मल्ल्या का पीछे पड़े हैं. जेट एयरवेज़ को हानि हुई. वे गोयल परिवार के पीछे पड़े हैं. एअर इंडिया की इतनी बड़ी हानियों का दोषी कौन है?

उन सज्जन पर लौटते हैं जो मुझे दिल्ली एअरपोर्ट पर मिले थे. मेरी सलाह भी बिलकुल वही होगी जो उन्होंने मुझे दी, कि यदि आप एअर इंडिया, स्पाइस जेट या इंडिगो से यात्रा कर रहे हैं तो अपना खाने का डिब्बा अवश्य साथ ले जाएँ. तथास्तु.

Latest Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

0FansLike
2,116FollowersFollow
8,310SubscribersSubscribe

Latest Articles