एनेट म्यूलर लिखती हैं कि शादी का टूट जाना आपके धैर्य की कड़ी परीक्षा लेता है, और साथ ही आपको अपनी शक्तियों से परिचित कराता है
गुज़रते हैं जब आसपास से तन्हा रातों में दो दिल
थाम लेना होता है इक दूजे को, भींचना होता है कसकर
और लगाना होता है दाँव कि शायद सुबह की रोशनी में भी
दोनों साथ ही होंगे, प्यार के सागर में डूबे हुए
59 वर्ष की उम्र में यदि आपके पति आपको छोड़ जाएँ – और ऐसा आपके साथ पहली बार न हुआ हो – तो आपको कैसा लगेगा?
सच कहूँ तो – बहुत ही बुरा.
मैं और मेरे पति 13 वर्षों से विवाहित हैं, और हम एक दूसरे को इससे पहले अनेक वर्षों से जानते हैं और साथ रह चुके हैं. इतने बरस साथ रहने के बाद हमारे संबंध अब पहले जैसे रोमांटिक नहीं रहे…हाथों में हाथ लेकर “आइ लव यू” कहना, वगैरह. समय के साथ संबंध में परिवर्तन आ ही जाता है, और यह एक अच्छी बात है. वह परिपक्व हो जाता है, आप बिना कुछ कहे एक दूसरे को समझने लगते हैं.
आप एक नींव को मज़बूत बना रहे होते हैं जो बरसों तक आप के रिश्ते को कायम रख सके. यदि आप 50 साल से अधिक उम्र के हैं तो आप जानते हैं कि समय के साथ साथ आपके शरीर और मन दोनों में बहुत सारे परिवर्तन हो जाते हैं. शायद आप कमज़ोर जाएँ, या बीमार पड़ जाएँ. इसलिए एक पक्का रिश्ता और मज़बूत संबंध जिसपर आप भरोसा कर सकें बहुत ही मत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि इसका मतलब है आप हमेशा, हर परिस्थिति में एक दूसरे का साथ निभाएँगे और एक दूसरे की सहायता करेंगे.
कम से कम मेरी तो यही धारणा थी और शादी करते समय मैं उन सभी ज़िम्मेदारियों से परिचित थी जो विवाहित जीवन में आती हैं. शादी करते वक़्त मैं जानती थी कि एक ही सप्ताह के बाद मेरे पति का कैंसर का ऑपरेशन होनेवाला है – ‘अच्छे-बुरे हर समय में साथ निभाना’.
(कभी ख़ुशी कभी ग़म. मेरी फेवरेट फिल्मों में से एक है.)
सभी दम्पतियों की तरह हमने भी अपने विवाहित जीवन में अच्छे दिन भी बिताए, और कुछ बुरे दिन भी देखे.
2019 के गर्मी के मौसम तक. तब मैंने देखा कि मेरे पति जो मुझसे 9 साल बड़े हैं, यानी उस समय वे 68 साल के थे, मेरी एक नज़दीक की सहेली में, जो अक्सर हमारे घर आया करती थी, दिलचस्पी लेने लगे हैं. वह एक आकर्षक महिला का नमूना है: गोरी-चिट्टी, लंबी टांगें, मुझसे 10 बरस छोटी, और वही कहने वाली जो सामनेवाला सुनना चाहे. और इसी चीज़ ने मेरे पति की धरती पर मानों एक बीज का काम किया. वे उसे हर रोज़ मिलने लगे, संगीत सभाओं में जाने लगे, और एक बार तो ऑपेरा सुनने के लिए पाँच दिन पैरिस की यात्रा पर भी गए. हर बार वे ख़ुश और संतुष्ट होकर लौटते, और मैं निराश होकर घर बैठे आँसू बहाती रहती.
चट्टान से गिरना
अगर आपको अचानक बिना किसी चेतावनी के ऐसी स्थिति में डाल दिया जाए तो आप उससे कैसे निपटेंगे?
सबसे पहले, ऐसा लगता है कि आप किसी चट्टान से गिर रहे हैं, नीचे कब और कैसे पहुँचेंगे कुछ पता नहीं. इस गिरने का कोई अंत भी है क्या?
अजीब बात तो यह है कि ऐसा मेरे साथ 19 वर्ष पहले भी हो चुका था. मेरा उस वक़्त का पार्टनर मुझे छोड़कर मेरी एक सहेली के साथ चला गया था. अब फिर से वही. जो पहले देख चुकी थी.
इस घटना के बाद मैंने गहराई से सोचना शुरू किया कि स्त्री और पुरुष ऐसा व्यवहार करनेवालों को क्यों अपना पार्टनर बनाते हैं. क्या कारण है कि अचानक एक दिन किसी पति को लगता है कि उसका अपनी पत्नी से मन भर गया है और उसे आगे चलकर कोई नया साथी ढूंढ लेना चाहिए? क्या यह बोरियत है, या एक नए रोमांच की लालसा? इतने साल जो साथ बिताए सब बेकार चले गए? एक दूसरे के लिए जो मेहनत की सब हवा में उड़ गई?
प्यार और विवाह दोनों में मेहनत लगती है. मैं जानती थी मुझे स्थिति पर काबू पाना है. मृत्यु और विश्वासघात में अंतर है. जब एक साथी मर जाता है तो निराशा होती है, अंत में दूसरा साथी इस बात से समझौता कर लेता है, चाहे लंबे समय तक शोक मनाने के बाद. शोक की कोई समय सीमा नहीं होती. मेरे साथ विश्वासघात हुआ था, क्रोध आ रहा था, यकीन नहीं हो रहा था.
मेरा दिमाग़ कह रहा था कि मैं परिस्थिति से निपट लूँगी, जैसा मैंने पहले भी किया था. पर मेरा दिल, मेरा मन, मेरी भावनाएँ, ये सब कुछ और ही कह रहे थे.
बार बार एक ही सवाल उठ रहा था: आखिर क्यों? मैंने क्या ग़लत किया था? उसमें क्या है जो मुझमें नहीं है? मैं अब क्या कर सकती हूँ?
इन प्रश्नों का कोई उत्तर मेरी समझ में नहीं आ रहा था. खास तौर से जब मैंने हर तरह से यह कोशिश की थी कि मेरे पति स्वस्थ रहें, सुखी रहें, और उनका व्यवसाय अच्छी तरह चलता रहे. मैंने हर बात में उनका पूरा साथ दिया था, हर प्रकार से उनकी सहायता की थी.
“मैंने क्या ग़लत किया?”
एक बार फिर से प्रश्नों को देखते हैं. क्यों एक 68 वर्षीय पति अचानक अपनी पत्नी को छोड़ कर चला जाता है? जब पूछा तो वे बोले कि वे बेहद अकेला महसूस कर रहे थे, हालांकि हम दोनों एक साथ काम करते थे, एक साथ रहते थे, बहुत सी चीज़ें एक साथ किया करते थे. मुझे बाद में पता चला कि यह अकेलापन भीतरी है, जो सिर्फ थोड़े समय के लिए बाहर से भरा जा सकता है. लंबे समय के लिए नहीं.
केवल आप इस ख़ालीपन को भर सकते हैं. उस नई स्त्री ने बाहर से अकेलेपन की भावना को बड़े आक्रामक होकर और हमेशा यह कहकर दूर किया कि आप सबसे अच्छे हैं, मैं आपसे बेहद प्यार करती हूँ, आपके बिना मैं एक पल भी नहीं रह सकती. ये बातें सिर्फ लड़के-लड़कियों के अर्थहीन सपनों वाले वायदे थे. (पुरुष यौन संबंध बनाने में असमर्थ था)
कोई भी रिश्ता बराबरी के आधार पर ही टिक सकता है, ऐसा नहीं कि एक व्यक्ति देता जाए और दूसरा लेता ही रहे.
मैंने क्या ग़लत किया? देते ही रहना बंद कर दिया था.
अन्यथा क्या होता? पता नहीं.
उसमें ऐसा क्या है जो मुझमें नहीं? वह 10 बरस छोटी है? गोरी-चिट्टी है? सिर्फ वही कहती है जो वे सुनना चाहते हैं? संभवत: एक नए, रोमांचक जीवन का वादा?
मैं क्या कर सकती हूँ? कुछ नहीं.
यही सबसे मुश्किल बात थी.
मैं कुछ भी नहीं कर सकती थी. बस यही देख सकती थी कि वे दिन ब दिन कैसे उस टीनेजर जैसा व्यवहार कर रहे हैं जो आँखों पर गुलाबी चश्मा चढ़ा लेता है और सिर्फ अपने में और अपनी दुनिया में खोया रहता है.
इतनी रातें जागते रहना, इतने दिन रोते रहना, लगातार वही सवाल पूछते रहना जिनका कोई उत्तर नहीं था. सबसे ज़्यादा दुख तो इस बात का था कि मेरे जीवन के दो सबसे प्रिय व्यक्तियों ने मेरे मुँह पर झूठ बोला था और मुझसे विश्वासघात किया था. मेरे लिए यह एक बहुत ही गहरी निराशा थी और प्रत्यक्ष नज़र आने वाली चोट थी.
जिस बात ने अंदर से मेरा धीरज बँधाया वह थी: मैं कर सकती हूँ.
निराशा और अयोग्य होने की भावना समय के साथ कम होते गए.
और यह जानने से मुझे एक आधार मिल गया. भले ही वह बहुत कम था. लेकिन उसने मुझे नीचे तक गिरने से रोक लिया. ऐसे भी कुछ पल और विचार आए जब मैंने सोचा कि वहाँ से दूर चली जाऊँ और सब कुछ समाप्त कर दूँ. लेकिन मेरी जिजीविषा जीत गई.
‘यह परिस्थिति व्यर्थ है’
एक बड़ा निर्णायक तथ्य भी है. मेरे पास कुछ बहुत अच्छे मित्र भी थे. चाहे जितनी बार उन्हें फोन करके मैं अपनी व्यथा सुनाती, चाहे जितनी बार अपनी हालत बताती. चाहे जितनी बार मैं उनके सामने या फोन पर फूटफूट कर रोती. चाहे जितनी बार मैं ग़ुस्सा करती. वे हमेशा मेरे साथ थे. मैं जान गई कि मेरे सच्चे दोस्त कौन हैं, और कौन केवल नाम के वास्ते.
इन लोगों के बिना – बाद में मैंने लगभग सभी को बुलाकर अपने दिल की गहराई से उनका आभार माना और कहा कि वे सब मेरे हार्दिक परिवार के सदस्य हैं – इन लोगों के बिना मैं इस परिस्थिति से उतनी अच्छी तरह से निपट नहीं सकती थी जैसा कि मैं कर सकी. ये ही थे जो मेरे सवालों के जवाब देते रहे. मैं जानना चाहती थी, समझना चाहती थी. इन्होंने मुझे सलाह दी, सक्रिय बनाया, मुझे संतुलित और जीवित रखा. और इन्होंने ही मेरे आधार को अधिक मज़बूत बनाया.
जब मेरे पति घर छोड़ कर चले गए तो मैंने अपने साझे घर को कुछ और अपना बनाना शुरू किया. मैंने बेडरूम को दोबारा पेंट करवाया, फर्नीचर को हटाकर अपनी पसंद से ऐसे सजाया जिससे मुझे आराम मिल सके. केवल अपने लिए.
अब मुझे किसी की परवाह करने या किसीसे कुछ पूछने की ज़रूरत नहीं थी. एक और नया अनुभव.
आख़िर मुझे क्या चाहिए? किस चीज़ से मुझे अच्छा लगेगा, मैं खुश होऊँगी?
मेरा ध्यान अब अपने पति पर नहीं, अपने आप पर केंद्रित होने लगा था.
एक बहुत महत्वपूर्ण कदम. अब मैं महत्वपूर्ण हो गई थी.
मेरे मन, मेरे विचार, मेरे हृदय और मेरी भावनाओं से मेरा घर भरने लगा.
एक बार टहलते समय मैंने अपने भीतर एक चित्र देखा जिसमें मुझे अपनी स्थिति स्पष्ट नज़र आयी.
मैंने देखा मैं एक कुएँ जैसे गड्ढे में हूँ और बाहर आने की कोशिश कर रही हूँ. मेरे शरीर का ऊपरी भाग बाहर निकल आया है और मैं मुंडेर पर झुकी हुई हूँ. लेकिन मेरे पैर अब भी नीचे फँसे हुए हैं. मैं आकाश देख रही हूँ, आसपास के दृश्य देख रही हूँ, लेकिन बाहर आ नहीं पा रही. ज़ोर लगाने से मेरी बाँहें बार बार मुड़ रही हैं फिर भी मैं गड्ढे के अंदर गिरी नहीं. फिर मैंने अपना पैर उठाकर मुंडेर के ऊपर रखा, ताकि मैं अपने आप को ठीक से खींच सकूँ. पहले एक फिर दूसरा. बात बन गई. कितना परिश्रम. मैं गड्ढे से बाहर आकर उसके पास ही थकान से चूर पड़ी रही. बेहद खुश थी.
मेरा प्रयास सफल हुआ.
इन्हीं नन्हें नन्हें कदमों से, छोटे-छोटे अच्छे पलों के कारण मैं आगे बढ़ती रही हूँ.
हमेशा यह विश्वास था कि मैं कर सकती हूँ.
मैंने एक अपरिचित दरवाज़े से गुज़रना पसंद किया, यह न जानते हुए कि उसके पीछे क्या है. और मुझे उसके पीछे एक और नया मिल गया है, अपनी नयी ज़िंदगी का.
कुछ चुनौतियाँ अब भी वही हैं, लेकिन बहुत सी नयी और रोमांचक भी हैं. मैं अपने आप को बेहतर जान गई हूँ, अपनी कमज़ोरियाँ और शक्तियाँ, मैंने अपने सच्चे दोस्त देखें हैं, और अब मैं जान गई हूँ कि मुझे क्या चाहिए और क्या नहीं, और क्या छोड़ देना है.
बाहर सूरज चमक रहा है, नावों ने पानी पर उतरना शुरू कर दिया है, और हल्की हल्की गर्मी पड़ रही है. बहार आनेवाली है.
हर कोई नींद से जाग कर फिर जीने लगता है.
हमें और क्या चाहिए?
मेरे एक मित्र का कहना है कि अगर चॉकलेट पिघलने लगे और आप उसे फ्रिज में रखें हैं तो वह चॉकलेट ही रहती है, लेकिन पहले जैसी नहीं.
जीतनेवाला सब ले जाता
कुछ नहीं कहना उस बारे में
जो सब हमने झेला-भोगा
दर्द भले है उसका मुझको
अब वह है केवल इतिहास
मैंने खेली बाज़ी अपनी
और तुमने भी यही किया
रहा न बाकी कुछ भी कहना
ख़त्म हो गए सारे इक्के
जीतनेवाला सब ले जाता
हारनेवाला कितना छोटा
खड़ा सामने उस विजय के
यही तो है बस नियति उसकी