Thursday, April 25, 2024
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लॉकडाउन के काल में महत्व का आविर्भाव

नागेश अलई लिखते हैं कि महामारी का सामना करने में प्रत्येक आयुवर्ग तथा सामाजिक और आर्थिक स्तर के अधिकांश व्यक्तियों ने सकारात्मक प्रवृत्ति दिखाई है

इस वर्ष की व्यापक महामारी ने मनुष्यों से उनके अस्तित्व का मुकुट (‘कोरोना’ का शाब्दिक अर्थ) छीन लिया है और सभी को अपने-अपने घर, महल, झुग्गी में क़ैद कर दिया है. मार्च महीने से हमारे देश लगे में लॉकडाउन ने, विश्व के अन्य देशों की तरह, सामाजिक नज़दीकी को सामाजिक दूरी में बदलकर चाहे अस्थाई रूप से इस रोगजनक के अधिक फैलने पर रोक लगा ली हो, फिर भी लाखों लोगों को रोगग्रस्त होने अथवा मृत्यु के मुख में जाने से बचा  नहीं पाया है. इसका एक और दुष्प्रभाव है महानगरों में फँसे प्रवासी मज़दूरों की दुर्दशा, जिन्हें कंगाल होकर जैसेतैसे अपने गाँवों-कस्बों की ओर लौटना पड़ा, जहाँ उनका कोई स्वागत नहीं हुआ. शहर और देश जो अब अल्प मात्रा में खुलने लगे हैं उसका कारण मानवी चिंताएँ अथवा उपचार नहीं बल्कि अपरिहार्य आर्थिक मजबूरियाँ हैं.

इस समय में नेतृत्व का अभाव भी सामने आया, जब सरकारों के विचारहीन, प्रतिक्रियात्मक, और असंवेदनशील प्रत्युत्तर देखने को मिले. ऐसे भीषण समय में विश्व स्तर पर खेली जा रही राजनीति भी इसका एक और घिनौना पक्ष है. सामूहिक रोगप्रतिकार क्षमता के युक्तिकरण  के बावजूद, लॉकडाउन के खुलने से होनेवाले कोविड 19 के विस्तार और संक्रमण का वास्तविक भय लोगों को लंबे समय तक अपने घरों में रहने पर मजबूर करेगा. तिसपर रोगियों का उपचार करने के लिए अस्पतालों और स्वस्थ्य-रक्षा संसाधनों की किल्लत. रोगजनकों का ख़तरनाक संमिश्रण!

पुरुष अब खाना बनाने की अपनी सुप्त योग्यता के लिए समय निकाल रहे हैं

लेकिन मानवीय मनोबल ने एक शताब्दी पूर्व 1920 में स्पैनिश फ्लू की महामारी का सामना किया था, और हम देखेंगे कि अब वही मानवीय शक्ति 2020 में भी मनुष्य को कोविड से लोहा लेकर उसे परास्त करने में उसकी सहायता करेगी.

एक अलग दृष्टिकोण से देखा जाए तो अत्यंत असामान्य परिस्थितियों के कुछ सकारात्मक प्रभाव भी होते हैं. मूर्त जगत में ‘स्थान से अप्रभावित’ रहना, कंपनियों की भाषा में समायोजन करने का एक पर्यायवाचक था, लेकिन अब जब जबरन घर से काम करना पड़ रहा है तो यह एक वास्तव बन गया है. सजीव कार्य सम्मेलनों का स्थान अब लंबे चलनेवाले व्यावसायिक वेबिनारों ने ले लिया है जिन में लोग “ज़ूम” अथवा “एम एस टीम” के माध्यम से सहभाग लेते हैं.

आने-जाने के समय की जो बचत होती है उसने दिन के 24 घंटों में अतिरिक्त उपयोग में आ सकनेवाले समय को बढ़ा दिया है. शहरों में शोर और धूल कम हुए हैं, परिवारों को एक साथ बैठने और बातें करने-सुनने का समय मिल रहा है, ट्रैफिक और प्रदूषण कम हुए हैं, भूतल अथवा समुद्र के प्राणी मनुष्य द्वारा उनके क्षेत्र का अतिक्रमण रुक जाने के कारण खुलकर क्रीड़ा कर पा रहे हैं, और ऐसा और भी बहुत कुछ हो रहा है. व्यवहारात्मक परिवर्तन तथा उपभोग में बदलाव से परिस्थितियाँ और पर्यावरण स्वस्थ बन रहे हैं, तथा इससे उस विश्व की कायापलट हो जाएगी जिसमें हम पले-बढ़े और आदी थे.

जीवन का एक मूलभूत तथ्य है जन्म से मृत्यु की ओर बढ़ते हुए अपने आप को बेहतर समझ पाना. यदि हम धैर्य तथा संयम से जीवन के विभिन्न पहलुओं पर काम करें तो यह प्रवास बड़ा सुहावना हो सकता है. वैयक्तिक विकास का एक उपाय यह है कि हम सदैव नए  कौशल सीखते रहें, और अपने भीतर की रचनात्मक प्रवृत्ति को फलने-फूलने दें. जिज्ञासा की इसी भावना ने हम में से बहुतों को ऐसे समय में जीवन के प्रति उत्साहित रखा जब चारों ओर संसार बंद होने की अवस्था में आ गया.

लगभग 70 वर्षीय एक प्राध्यापक और पूर्व विपणन व्यावसायिक मित्र कॉलेज बंद हो जाने से चिंतित थे कि अपने छात्रों को कैसे पढ़ाएँगे क्योंकि वे कक्षाओं में सत्र लेने के अभ्यस्त थे. कॉलेज ने कक्षा लेने का एक डिजिटल साधन उपलब्ध करा दिया किंतु वे अपने सेलफोन के उपयोग के अतिरिक्त टेक्नोलोजी से दूर ही रहते थे. लेकिन छात्रों को शिक्षा देने की अपनी  लगन के कारण वे डिजिटल कॉनफ़रेसिंग सीखने लगे और पिछले कुछ महीनों में वे छात्रों के साथ विडियो कॉनफ़रेसिंग करने की कला में माहिर होकर चर्चाएँ तथा वाद-विवाद, स्लाइड दिखाना आदि कार्य, शिक्षा की गुणवत्ता और परिपूर्णता से बिना कोई समझौता किए आराम से घर बैठे सुरक्षित रहकर कर रहे हैं.

एक और मित्रने, जो अभी अभी सत्तर पार हुए हैं, मछलियाँ पालने के अपने बचपन के शौक को फिर से शुरू किया है. पास ही कहीं से नया फिश टैंक लाकर उसे अनूठी मछलियों से भर दिया है. वे अपनी मछलियों का बड़ा ध्यान रखते हैं, उन्हें सही प्रकार का पोषण देते हैं, टैंक में तृण-पौधे लगाकर बड़े आनंद और स्नेह से मछलियों को टैंक में तैरता हुआ देखते हैं. अपने टेरेस में उन्होंने एक बाग़ भी लगाया है और वहाँ सब्जियाँ उगाकर वे पड़ोसियों को बाँटते हैं. उनकी पत्नी ने, जो टेक्नोलोजी से बिलकुल अनभिज्ञ थीं, इस बंदी के समय का सदुपयोग करके टेक्नोलोजी में प्राविण्य प्राप्त किया और अब वे डिजिटल काउंसेलिंग करती हैं.

एक अत्यंत सक्रिय वॉट्सएप ग्रुप के दो सदस्यों ने विश्वभर के समाचार खंगालकर कोविड 19 के विरुद्ध लड़ाई की सारी जानकारी एकत्रित करना आरंभ किया है – रोगियों तथा रोगमुक्त होनेवालों के आँकड़े, परीक्षणाधीन उपचार, बरती जाने वाली सावधानियाँ, आवश्यक वस्तुओं की खोज इत्यादि. यह सभी को अद्यतन जानकारी देने और सुरक्षा उपाय बताने वाली एक अत्यंत उपयोगी सेवा है. वे उपयुक्त जानकारी उपलब्ध कराने के लिए अपना समय और श्रम दे रहे हैं ताकि लोग साहस के साथ इस महामारी का सामना कर सकें.

कुछ लोगों ने घर की बाल्कनी अथवा खिड़की में सब्जियाँ उगाना शुरू किया है

बहुत लोगों ने एकत्र आकर भोजन बनाकर भूखे प्रवासी मज़दूर परिवारों को खिलाना, अथवा वंचित स्वास्थ्य कर्मियों को पी पी ई मास्क प्रदान करना शुरू किया है. अन्य कई लोगों ने इस महान कार्य के लिए सहर्ष यथाशक्ति धनराशि देकर सहायता की है.

एक और मित्रने बड़ी सहजता से डिजिटल विश्व को अपना लिया है, और अपने ज्योतिष-ज्ञान के पाठ तथा भविष्यवाणियों के विडियो बनाकर वे अब वायरल हो गए हैं. आज दिनभर उन्हें अपने अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों को परामर्श देने से ज़रा भी अवकाश नहीं मिलता. एक मित्र की बेटी भी ज़ूम पर क्लास चलाकर पूरे एशिया के लोगों को योग सिखाती है. सत्तर वर्ष के एक पूर्व-नाविक अपनी जापानी भाषा के प्राविण्य को दृढ़ कर रहे हैं, और दूसरे एक संस्कृत के पाठ दोहरा रहे हैं. स्वास्थ्य क्षेत्र के एक व्यवसायी डिजिटल ध्यान-योग के सत्र ले रहे हैं और बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं.

यदि आप सही मिश्रण तैयार कर पाएँ तो जीवन रसभरा हो सकता है. मैं भी – एक चंचल स्वभाव वाला, खाने का शौकीन, बचपन में रसोई में माँ की सहायता करनेवाला व्यक्ति – खाना पकाना सीखकर अब एक पूर्णकालिक घरेलू शेफ बन गया हूँ और अपने परिवार को स्वादिष्ट तमिलियन और महाराष्ट्रियन व्यंजन बनाकार खिलाता हूँ. और ऐसा करने में यह जान सका हूँ कि अच्छा भोजन पकाने के लिए माँओं और रसोइयों को कितने उत्साह और धीरज से काम करना पड़ता है. किसी भूखे को खिलाने से बेहतर कोई सेवा हो सकती है? याद है सुदामा ने कृष्ण को चावल के कुछ दाने ही भेंट किए थे?

महामारी का सामना करने में प्रत्येक आयुवर्ग तथा सामाजिक और आर्थिक स्तर के अधिकांश व्यक्तियों ने सकारात्मक प्रवृत्ति दिखाई है. कठिन परिस्थिति में भी उनके उत्साह बनाए रखने से अन्य लोग भी अछूते नहीं रहे और जो लोग डरे-सहमे या ऊब गए थे उनकी भी विचारशैली परिवर्तित होने लगी है.

वेदांत में आध्यात्मिक यात्रा में ‘स्वानुभव’ की संकल्पना है, जिसका अर्थ है प्रत्यक्ष अनुभव. जीवन यात्रा इससे कुछ भिन्न नहीं है – प्रयोग करने और अनुभव करने से ही इसका पता चलता है. परिस्थितियाँ आपकी विशिष्टता को ढाँक सकती हैं, लेकिन आपके निर्णय आपकी विशिष्टता को उजागर कर देते हैं.

इस बंधनात्मक लॉकडाउन पर विभिन्न प्रतिक्रियाएँ हुई हैं. लेकिन बहुत से लोग अपने जीवन की मूलभूत आनंद-वृत्ति के कारण पहले से बेहतर बन सके हैं. अंतत: जीवन कोई क्षणिक स्फुरण मात्र नहीं, एक निरंतर उमंग है. जीते जाएँ, दमकते जाएँ. कोई वायरस आपका मुकुट नहीं छीन सकता.

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