महान संगीतकार नौशाद एक मोहक शायर भी थे। हिन्दी फिल्म संगीत में उनका अपार योगदान रहा, नरेंद्र कुसनूर की कलम से।
देशव्यापी लॉकडाउन के बाद, कई गायक अपने घरों से ऑनलाइन प्रदर्शन कर रहे हैं। 1960 में आई फिल्म मुगल– ए– आज़म का गाना ‘मोहे पनघट पे’ निरन्तर सुना जाता है। इस गाने को लता मंगेशकर ने गाया, शकील बदायूनी ने लिखा और नौशाद ने संगीत में पिरोया। यह गीत एक बहुत बढ़िया उदाहरण है, किसी गाने में राग गारा के प्रयोग का। बहुत से उदाहरणों में से यह एक ऐसा उदाहरण है जो प्रसिद्ध संगीत निर्देशक के भारतीय शास्त्रीय संगीत पर पकड़ को बतलाता है।
उदाहरण के तौर पर, 1952 में आई फिल्म ‘बैजू बावरा’ में, नौशाद ने मो. रफी के ‘मन तड़पत हरि दर्शन को आज’ में प्रसिध्द राग मल्कौंस का प्रयोग किया था।
8 साल बाद, नौशाद और मो. रफी, दिलिप कुमार की फिल्म ‘कोहिनूर’ के लिए साथ आए, और इस फिल्म के गीत ‘मधुबन में राधिका’ की धुन में राग हमीर का इस्तेमाल किया। इन दोनों गानों के गीतकार बदायूनी थे।
हिन्दी फिल्म संगीत में नौशाद का अत्याधिक योगदान रहा है। कुंदन लाल सहगल के बाद वे दूसरे संगीत सुपरस्टार थे। 40 के दशक के मध्य से 60 के दशक के प्रारंभ तक उन्होंने बड़े बैनर के लिए बनी फिल्मों में हिट संगीत दिया। इन फिल्मों में रतन, अनमोल घड़ी, दीदार, बैजू बावरा, अमर, उड़न खटोला, मदर इंडिया, मुगल–ए–आज़म, कोहिनूर, राम और श्याम, लीडर, मेरे मेहबूब और गंगा–जमुना शामिल थी। ‘जब दिल ही टूट गया’ (शाहजहाँ), ‘सुहानी रात’ (दुलारी) और ‘प्यार किया तो डरना क्या’ (मुगल–ए–आज़म) जैसे गीत लोगों के लिए आदर्श बनें जिसमें संगीत नौशाद का है।
उनकी अभूतपूर्व सफलता के बावजूद, पिछ्ले साल 25 दिसंबर को नौशाद की 100वीं जन्मदिन काफी हद तक अप्रभावित रही। मुंबई के, नेहरु सेंटर में उनकी याद में एकमात्र शो माऊसीक़ार–ए–आज़म नौशाद आयोजित किया गया, जिसके रचयिता अजय मदान थे।
5 मई को उनके निधन को 14 साल पूरे हो गए। आज भी उनके गीत बीते समय के श्रोताओं के द्वारा बजाए जाते हैं और टेलीविज़न टैलेंट हंट प्रतियोगिताओं में गाये जाते हैं। शास्त्रीय रागों और लोक धुनों के उपयोग के अलावा, उनकी Orchestra की शैली ने बाद के कई संगीत निर्देशकों को प्रेरित किया। भारतीय संगीत के अलावा वो पाश्चात्य संगीत को बनाने और व्यवस्थित करने में भी माहिर थे।
उस्ताद से मुलाकत
हालांकि, मैं नौशाद से विभिन्न संगीत कार्यक्रमों और टीवी चैनल पार्टियों में अनौपचारिक रुप से कई बार मिला, परंतु केवल एक बार ही गहन साक्षात्कार(In-depth Interview) करने का अवसर प्राप्त हुआ, यह 1997 में मुंबई के मिड–डे अखबार के लिए था। हमारे अखबार के लिए एक प्रसिद्ध व्यक्ति की उपलब्धियों पर विस्तार से विवरण करने के लिए एक कॉलम था, और नौशाद के लिए हमने, फिल्म बैजू बावरा को चुना।
जब मैनें उन्हें फोन पर मिलने का आग्रह किया तो उन्होंने पूछा “क्या कुछ नया है जो मैं आपको बता सकता हूँ, कुछ ऐसा है जिसके बारे में नहीं लिखा गया है?” जब मैंने उन्हें विषय बताई तो वो मान गए और कुछ दिनों बाद मैं उनके बांद्रा में कार्टर रोड स्थित आलिशान बंगले पर गया।
हम एक कमरे में बैठें थे और उन्होंने बताया की कैसे शकील बदायूनी और वो इसी कमरे में एक गाने पर घण्टों विचार विमर्श करते थे। उन्होंने आगे बताया की फिल्म में गीत को कहाँ और कैसे इस्तेमाल करना है, और वो तब तक काम करते थे जब तक दोनों एक ही बात पर सहमत ना हों।
विजय भट्ट द्वारा निर्देशित फिल्म ‘बैजू बावरा’, सम्राट अकबर के दरबार में एक युवा संगीतकार के बारे में है जो उस्ताद तानसेन को संगीत में प्रतिद्वंद की चुनौती देता है। नौशाद ने बताया की, क्योंकि कहानी संगीतकारों के बारे में थी, इसलिए इसे एक मजबूत शास्त्रीय आधार की आवश्यकता थी। मुख्य रुप से, फिल्मों के गाने उस्ताद आमिर खान ने गाए और कुछ गाने पण्डित डी.वी.पलुस्कर ने गाए। यहाँ तक की मो. रफी और लता मंगेशकर के लिए भी मैनें शास्त्रीय गीतों को चुना।
नौशाद साहब बताते हैं कि प्रसिद्ध मल्कौंस भजन के अलावा ‘तू गंगा की मौज’ में राग भैरवी, ‘ बचपन की मोहब्बत’ में राग माण्ड, ‘ ओ दुनिया के रखवाले’ में राग दरबारी, ‘ झूले में पवन’ में राग पिलू और ‘मोहे भुल गये सावरिया’ में राग भैरव और कालिन्दगा का मिश्रण था। फिल्म में, स्थापित शास्त्रीय गायकों को लेना एक बड़ा जोखिम था, पर यह काम कर गया और उस्ताद आमिर खान और पण्डित पलुस्कर ने हमारा बहुत सहयोग किया। लता मंगेशकर पहले से ही स्टार थीं लेकिन यह फिल्म रफी साहब के लिए वरदान साबित हुई, जिन्होंने फिल्म के दो हिट गीत ‘मन तड़पत’ और ‘ओ दुनिया के रखवाले’ गाए।
‘बैजू बावरा’ से पहले नौशाद और शकील बदायूनी ने मेला, दीदार और आन जैसी फिल्मों में साथ काम किया था। नौशाद के अनुसार दोनों ने एक दूसरे की शैली को समझा और सम्मान दिया। संगीत निर्देशक नौशाद बताते हैं कि फिल्म ‘बैजू बावरा’ की सफलता के बाद उन्हें एक टीम के रुप में देखा जाने लगा, और कई लोग यह आग्रह करते थे की पाशर्व गायक मो. रफी ही हों।
अपने सपनों के पीछे
नौशाद ने स्वयं लखनऊ के विशिष्ट आतिथ्य का प्रदर्शन करते हुए उत्कृष्ट प्याली में मुझे चाय परोसने के बाद साक्षात्कार आयोजित किया था। संगीत में अपना भविष्य बनाने के लिए वो अपने घर (लखनऊ) से भाग गए और कोलाबा में एक परिचित के साथ रहने के बाद वो दादर चले गए, जहाँ वो फुटपाथ पर सोते थे।
अपने सपनों को पूरा करने को उत्सुक, नौशाद ने उस्ताद झंडे खान और बाद में जाने–माने संगीत निर्देशक खेमचन्द्र प्रकाश के सहायक के रुप में काम किया। एक संगीत निर्देशक के रुप में, उन्होंने 1940 में आई फिल्म ‘प्रेमनगर’ से शुरुआत की। 1942 में आई फिल्म ‘नई दुनिया’, जो सुरैया की पहली फिल्म थी और इसका गाना ‘बूट मैं करुँ पॉलिश बाबू’ सुरैया ने गाया, जिसका संगीत नौशाद का था और यह संगीतकार के तौर पर उनके शुरुआती उपलब्धियों में से एक थी। उनकी पहली हिट फिल्म 1944 में आई, ‘रतन’ थी, जिसमें अमीरबाई कर्नाटका, जोहराबाई अम्बालेवाली और करण दीवान द्वारा गाए गए गाने थे। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
इस साक्षात्कार के कुछ महीने बाद, मुझे नौशाद से फिर से मिलने का मौका मिला लेकिन यह उनके आवास पर कुछ अन्य मीडियाकर्मियों के साथ था। मौका था ऐल्बम आठवां सुर के लाँच का, जिसमें उनके द्वारा लिखी गई कवितायें थी।
‘नवरस रिकॉर्ड्स’ ऐल्बम में गायक हरिहरन और प्रीति उत्तम थे, जिसका प्रारुप गज़ल और नज़्म पर आधारित था। नौशाद ने बताया, “मैं लखनऊ में अपने शुरुआती दिनों से ही उर्दू शायरी किया करता था। लेकिन संगीत निर्देशन में व्यस्तता के कारण मैं शायरी को एक समय के बाद आगे नहीं बढ़ा सका। अब मेरे पास थोड़ा समय है तो अब मैं अपनी शायरी को आगे बढ़ा सकता हूं”।
शायरी पहले
उनकी जीवनकथा ‘Naushadnama: The Life And Music Of Naushad’ के लेखक राजू भारतन, नौशाद के जीवन में शायरी का क्या महत्व था उसके बारें में बतलाते हैं। वो लिखते हैं कि नौशाद के लिए शायरी पहले आती थी, संगीत बाद में। उनके संगीत का जादू ऐसा था कि आप कभी नहीं जान सकते की शायरी का विलय संगीत में और संगीत का विलय शायरी में कहां और कैसे हुआ। शकिल की शायरी और नौशाद का संगीत आपस में जुड़े थे। भारतन की लिखी पुस्तक, ‘हे हाउस पब्लिशर्स’ ने जारी किया। जीवनकथा में नौशाद के जीवन के जुड़े कई दिलचस्प पहलुओं को उजागर किया है। संगीत निर्देशक सी. रामचंद्र के साथ उनकी प्रतिद्वंदिता पुस्तक में विस्तार से बताई गई है और एक जगह यह भी विवरण मिलता है कि अपने शब्द चयन से कैसे उन्होंने लता मंगेशकर की सहायता की।
एक कहानी के अनुसार, नौशाद ने गायक तलत महमूद के साथ कभी काम नहीं किया क्योंकि एक बार नौशाद, महमूद साहब के सामने ही सिगरेट पी रहे थे जिससे तलत महमूद काफी नाराज़ हो गए, दूसरी कहानी यह है कि मुकेश और तलत महमूद के साथ काम करना उन्हें एक सीमा में बांधता था, जबकि रफी साहब की आवाज उन्हें विविधता प्रदान करती थी। पुस्तक का एक अनुभाग यह भी बताता है की कैसे उन्होंने अपनी पत्नी आलिया के जोर देने पर शमशाद बेगम की तुलना में, गायिका लता मंगेशकर को ज्यादा महत्व दिया। जब भी मैं उनसे मिलता हर बार वो पहले से ज्यादा स्टाइलिस्ट और ज्ञानी व्यक्ति नज़र आते। वो अपनी अनोखी शैली में मेरा स्वागत ‘ख्वातीन–ओ–हजरात’ कह कर करते थे। संगीत की विशालता और विविधता के ज्ञान ने उन्हें एक अद्वितीय स्थान दिया।
श्रेष्ठ नौशाद
हालांकि उन्होंने कई हिट दिए, लेकिन ये 10 गाने नौशाद के ज्ञान और बहुमुखी प्रतिभा को पारिभाषिक करते है।
1.आवाज दे कहाँ है – अनमोल घड़ी(1946)
तनवीर नकवी की कलम से अलंकृत, नूर जहान और सुरेन्द्र के स्वर से सजा यह गाना नौशाद की शुरुआती हिट फिल्मों में से एक था।
2.जब दिल ही टूट गया – शाहजहाँ(1946)
मजरूह सुल्तानपुरी द्वारा लिखा यह अत्यंत दुखद गाना है, जिसे सुपरस्टार कुंदन लाल सहगल ने अपनी आवाज दी।
3.सुहानी रात ढल चुकी – दुलारी(1949)
ये हिट गाना, मो. रफी के गाए प्रारंभिक फिल्मों के हिट गानों में से एक है। यह अपने समय का बेहतरीन गीत था, जिसे शकील बदायूनी ने लिपिबद्ध किया है।
4.मन तड़पत – बैजू बावरा(1952)
वैसे तो फिल्म में कई हिट गाने थे, परंतु ‘मन तड़पत’ रफी साहब के श्रद्धापूर्वक भाव से गाने और संगीत में राग मल्कौंस के इस्तेमाल के कारण याद किया जाता है।
5.इन्साफ का मंदिर है – अमर(1954)
मो. रफी का गाया एक और खूबसूरत गाना जिसे नौशाद- बदायूनी की जोड़ी ने क्या कमाल लिखा है। गीत की पंक्तियाँ कुछ इस तरह है “इन्साफ का मंदिर है, ये भगवान का घर है”।
6.दुनिया में अगर आए हैं – मदर इंडिया(1957)
फिल्म ‘मदर इंडिया’ का यह लोकप्रिय गाना मंगेशकर बहनें, लता, मीना और उषा मंगेशकर ने गाया है। गाने में एक संदेश है जो महत्त्वपूर्ण और समय से परे है।
7.प्यार किया तो डरना क्या – मुगल-ए-आजम (1960)
सबसे बड़े प्रेमगीतों में से एक जिसे लता मंगेशकर जी ने गाया और खूबसूरत मधुबाला पर फिल्माया गया।
8.मधुबन में राधिका – कोहिनूर(1960)
मो. रफी का गाया यह गाना राग “हमीर” के कारण जाना जाता है जिसे दिलिप कुमार पर फिल्माया गया था। गाने में सितार वादन उस्ताद अब्दुल हलीम जग्गेर खान का है।
9.मेरे महबूब तुझे – मेरे महबूब(1963)
साधना और राजेन्द्र कुमार पर फिल्माया गया यह गाना मो. रफी का बड़ा हिट गाना था जिसे नियमित रुप से रेडिओ पर चलाया जाता था।
10.आज की रात – राम और श्याम(1967)
यह गाना वहीदा रहमान और दिलिप कुमार पर फिल्माया गया। रफी साहब के गाए इस गाने में नौशाद ने Piano का बेहतरीन इस्तेमाल किया।