अंतर्राष्ट्रीय संगीत मंच पर शुरुआती भारतीय नामों में से एक, पंडित रविशंकर ने अपने परीपूर्ण कौशल से सभी को मंत्रमुग्ध किया। नरेंद्र कुशनूर ने महारथी के साथ अपनी मुलाकातो का चित्रण किया हैं।
भाग 1 – अलाप
1997 में जनवरी की एक दोपहर, मुझे अचानक सितार वादक पंडित रविशंकर का साक्षात्कार करने का काम सौंपा गया और मैं दो घंटे में मुंबई के नेपियन सी रोड स्थित उनके गेस्ट हाउस में पहुंचा। उन्हें अगली सुबह मुंबई में एक संगीत कार्यक्रम करना था, और मुझे अपना लेख दर्ज करने के लिए वापस जाना था।
मैं घबराया और डरा हुआ था। हालाँकि मैं शास्त्रीय संगीतकारों से पहले भी मिला हुआ था, लेकिन मैंने उनके कद के किसी के साथ साक्षात्कार नहीं किया था। सबसे नज़दीकी मौका था जब एक पत्रकार सम्मेलन में गायक पंडित भीमसेन जोशी से एक सवाल पूछा था। मैंने शंकर जी के रिकॉर्ड्स को सुना था, ‘अनुराधा’ और ‘गांधी’ में उनके संगीत से प्रेम किया था, बीटल्स और वुडस्टॉक के साथ उनके संबंधो के बारे में जानकारी थी, और यहां तक कि नई दिल्ली में एक संगीत कार्यक्रम में भाग लिया था, लेकिन मुझे उनके बारे में कोई गहरी जानकारी नहीं थी । ‘गूगल’ शब्द तब मौजूद नहीं था। साथ ही समय की सीमा भी थी।
मेरे सहकर्मी, फोटोग्राफर प्रशांत नकवे और मैं समय पर कार्यक्रम स्थल पर पहुँच गए। हम बैठक में इंतजार कर रहे थे, एयर-कंडीशनिंग और अगरबत्ती की सुगंध के बावजूद, मुझे पसीना आ रहा था और मैं हिल रहा था। शंकर जी अचानक अंदर चले आये, उन्होंने हाथ जोड़कर नमस्ते का इशारा किया, मुस्कुरायें और मेरे बगल में बैठ गये। उनके पास एक कला थी जिसने उनके 77 साल कि उम्र को गायब कर दिया । मैंने उन्हें पंडितजी के रूप में संबोधित किया और उन्होंने कहा, “मुझे रवि कहो”। बेशक, मैं ‘रविजी’ के लिए सहमत हो गया , लेकिन अचानक याद आया कि मैं उनके पैर छूना तो भूल ही गया।
संगीतकार ने उन दो महिलाओं का परिचय दिया जो उनके साथ थीं। “यह मेरी पत्नी सुकन्या है और यह मेरी बेटी अनुष्का है,” उन्होंने कहा, उसी समय नकवे ने क्लिक करना शुरू किया। वह हम दोनों को नज़रअंदाज़ किए बिना मुझसे बात भी कर रहे थे और कैमरे के लिए पोज़ भी दे रहे थे । संभवतः मैं अपने शुरुआती या मध्य 30 की उम्र का दिख रहा था, उन्होंने बीटल्स के बारे में बात करना शुरू कर दिया,और यहां तक की मुझसे कुछ गाने भी गवाये। इससे पहले कि मैं महसूस करता, वह भारतीय शास्त्रीय संगीत पर एक ऐसी भाषा में बोल रहे थे जिसे मैं समझता था। हमारी बातचीत का बाकी हिस्सा नदी की तरह बहता रहा।
भाग 2 – जोड़
11 दिसंबर को उनकी सातवीं पुण्यतिथि थी। इन वर्षों में, कुछ अद्भुत बातचीत हुई थी। मैंने चार अवसरों पर शंकर जी का साक्षात्कार लिया, उनसे एक बार टेलीफ़ोन पर बात की और उनसे कई बार संगीत कार्यक्रमों या रात्रिभोज में मुलाकाते की। स्वाभाविक रूप से, मैं हर बार उनके करिश्मे और संवादात्मक कौशल से प्रभावित हुआ । उन आँखों में माधुर्य था,और उनकी जीभ में जादू । उस पहली मुलाकात ने उनके संगीत को समझने और एक उत्साही प्रशंसक बनने के लिए भी टोन सेट कर दी।
मैहर घराने के एक प्रतिनिधि, शंकर जी ने महान यंत्र वादक बाबा अलाउद्दीन खान से सबक लिये। इससे पहले, उन्हें पेरिस में अपने भाई, नर्तक और नृत्य-परिकल्पक उदय शंकर के साथ जाने का मौका मिला। यहीं पर वह पहली बार पश्चिमी संस्कृति से अवगत हुए।
शंकर जी ने खान की बेटी, प्रतिपादक सुरबहार अन्नपूर्णा देवी से शादी की, और वे अंततः अलग हो गए। 1950 के दशक में, उन्होंने तबला वादकों पंडित चतुर लाल और उस्ताद अल्लारखा के साथ बड़े स्तर पर अमेरिका की यात्राएं की। उस्ताद अल्लारखा उनके साथ 1967 में मोंटेरी पॉप फ़ेस्टिवल और 1969 में वुडस्टॉक फेस्टिवल भी गये। वायलिन वादक येहुदी मेनुहिन, संगीतकार फिलिप ग्लास, बांसुरीवादक जीन पियर रामपाल, सेलो वादक मिस्त्रिस्लाव रोस्ट्रोपोविच और कंडक्टर आंद्रे प्रवीन और मुंबई के ज़ुबिन मेहता के साथ सहयोग करके कार्यक्रम प्रस्तुत किया। उन्होंने भारतीय संगीत के प्रति विदेशियों को भी आकर्षित किया।
इस वरिष्ठ प्रतिष्ठित व्यक्ति को 1999 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। वह निजी यात्रा पर आए थे और होटल ओबेरॉय में रुके जो अब ट्राइडेंट बन गया हैं। तब अनुष्का 17 साल की थीं और उसने अपने लिए एक छोटा सा नाम बनाया था, हालांकि आलोचकों को लगता था कि वह केवल अपने पिता की महिमा पर सवार थीं। मुझे उनका अलग से साक्षात्कार करना था, और उन्हे हमारी पहली मुलाकात का अस्पष्ट स्मरण था। इस समय शंकर जी के साथ मेरी बातचीत अधिक संगीतमय थी। मैंने तब तक उनकी कुछ रिकॉर्डिंग्स सुन ली थीं, और मेरे पसंदीदा में हमीर, जोगेश्वरी, किरवानी, चारुकेशी, मांज खमज और मियाँ की मल्हार शामिल थे। बिना किसी तकनीकी रुप में उन्होंने मुझे रचनाओं को संक्षेप में समझाया। मैंने बीटल्स के जॉर्ज हैरिसन द्वारा निर्मित और माइलस्टोन एंटरटेनमेंट द्वारा भारत में रिलीज़ किए गए उनके एल्बम ‘चैंट्स ऑफ़ इंडिया’ की भी प्रशंसा की थी। यह ज़िक्र हमें भारतीय शास्त्रीय संगीत के आध्यात्मिक स्वरूप पर ले गया।
साक्षात्कार के दौरान, मैंने शंकर जी के ऑटोग्राफ के लिए ‘माइलस्टोन’ नामक एक सारेगामा एचएमवी एल्बम निकाली। सुकन्या ने इससे पहले ये कवर नहीं देखा था और लगा कि यह पुरानी रिकॉर्डिंग का रीपैक किया गया संस्करण है, जो उन्हें बिना बताए जारी किया गया। उन्होंने महसूस किया कि उन्हें इस पर हस्ताक्षर नहीं करना चाहिए, लेकिन उन्होंने शांतिपूर्वक कहा, “यह उसकी गलती नहीं है”। हम किसी भी संगीत की दुकान में इसे प्राप्त कर सकते हैं और लेबल से संपर्क कर सकते हैं। ”
कुछ हफ्ते बाद, शंकर जी मुंबई लौट आए। चूंकि मैं छुट्टी पर था, इसलिए मैंने उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल नहीं होने का फैसला किया।
मेरे बेटे का जन्म 12 मार्च, 1999 को हुआ था, जिस दिन कार्यक्रम निर्धारित था। जब मैंने अपने दफ्तर मे सुचना देने के लिए फोन किया उस समय मुझे मेनुहिन के निधन की खबर मिली । कुछ घंटों बाद, मैं ओबेरॉय के रास्ते पर था, तांकि महान वायलिन वादक पर उनकी निजी श्रद्धांजलि ले सकूं।
हालाँकि वह बहुत ही उदास मूड में थे, लेकिन शंकर जी ने मुझे मेरे बेटे के जन्म पर बधाई दी और अपने मैनेजर टेरी से कहा कि मुझे मिठाई का एक डिब्बा दे दें। उन्होंने मेनुहिन के भारत के प्रति प्रेम के बारे मे बात की ,उनके 1967 में वेस्ट मीट्स ईस्ट के सहयोग के बारे में और कैसे उन्होंने उन्हें अमेरिका में प्रदर्शन करने के लिए प्रोत्साहित किया।
तब तक, मुझे एहसास हो गया था कि मैंने धीरे-धीरे रवि शंकर कैसेट्स का एक संग्रह तैयार कर लिया था, जिनमें से कई मैंने अंततः सीडी के रुप में भी खरीदे । वह सरोद वादक उस्ताद अली अकबर खान के साथ जुगलबंदी, प्रवीण और मेहता द्वारा संचालित उनका सितार संगीत कार्यक्रम, उनकी कम प्रसिद्ध रचनाओं की रिकॉर्डिंग और राग असा भैरवी, भीना शद्जा पंचम से गारा आदि। मैंने सितार वादक उस्ताद विलायत खान, पंडित निखिल बनर्जी, उस्ताद अब्दुल हलीम जाफर खान और उस्ताद रईस खान का भी अनुसरण किया है। सुनने का विकल्प अक्सर मूड और पसंदीदा राग पर निर्भर करेगा। देर रात को अक्सर रईस खान का दरबारी होता था।
सबसे यादगार क्षणों में से एक 2002 में गुनिदास संगीत सम्मेलन जहां मैं भाग लेने गया था, वहां शंकर जी ने साढे 10 बीट चक्र में राग हमीर कल्याण बजाया। पर्क्युसन वादक तौफ़ीक कुरैशी और बांसुरीवादक रोनू मजूमदार मेरे पास बैठे थे, और वे विश्वास नहीं कर सके की 82 साल की उम्र में उन्होंने क्या शानदार प्रदर्शन किया । एक साक्षात्कार के लिए, किसी भी संदेह से बचने के लिए, मैंने तबला वादक उस्ताद ज़ाकिर हुसैन द्वारा जारी सीडी जो मोमेंट्स रिकॉर्ड्स द्वारा प्रसारित की गयी थी उसे साथ लेकर गया।
उन दिनों, जब कोई सेल्फी नहीं थी, ऑटोग्राफ पाने का एक विशेष आकर्षण था। इसलिए अपने अगले साक्षात्कार में, मैंने शंकर जी की पुस्तक ‘राग माला’ की एक प्रति ली। इसे पढ़ना आंखे खोलने वाला था क्योंकि इसमें कुछ शानदार किस्से थे और उनकी संगीत संबंधी सोच पर बहुत सारी जानकारी थी। साक्षात्कार के दौरान, उन्होंने कुछ चीजों पर विस्तार से बताया, जो पुस्तक में शामिल थे। यह उनका अंतिम गहन साक्षात्कार था, हालांकि हमने कुछ और बार बातचीत की।
जब उस्ताद विलायत खान का मार्च 2004 में निधन हुआ, तो मैंने शंकर जी को नई दिल्ली में छोटी श्रद्धांजलि के लिए बुलाया। उनकी प्रसिद्ध प्रतिद्वंद्विता की बात को देखते हुए, मैंने उनसे बहुत कुछ कहने की उम्मीद नहीं की थी। लेकिन उन्होंने काफी बात की, खान को एक बहुमूल्य रत्न और एक भावपूर्ण कलाकार बताया। उन्होंने कहा कि प्रतिद्वंद्विता की कहानियां प्रेस और निहित स्वार्थ वाले लोगों द्वारा बनाई गई थीं। और कहा, “तकनीकी संगीत के मामलों में हमारे बीच कुछ मतभेद थे, लेकिन कलाकारों के रूप में, हमने एक-दूसरे की प्रशंसा की,” ।
मैं उसके बाद दो बार शंकर जी से मिला। ताजमहल होटल में जुबिन मेहता को सम्मानित करने के लिए आयोजित एक रात्रिभोज में और 2005 की शुरुआत में वायलिन वादक एल सुब्रमण्यम, गायक अल जेरारू और कीबोर्ड वादक जॉर्ज ड्यूक की नई दिल्ली संगीत समारोह में एक प्रस्तुति थी। दोनों अवसरों पर, उन्होंने मेरे साथ कुछ मिनट बिताए, एक-दो चुटकुले सुनाये। सुकन्या हर जगह उनके साथ ही होती थी।
हालांकि मैं उस्ताद से फिर से मिलना चाहता था, लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ। उन्होंने अमेरिका और नई दिल्ली के बीच काफी समय बिताया, और उनकी मुंबई यात्रा काफी कम हो गई। इस बीच, मैंने यूट्यूब पर कुछ दुर्लभ फुटेज खोटे, जिनमें मोंटेरी में अल्लारखा के साथ राग पंचम से गारा प्रस्तुत करने का यह अद्भुत क्लिप भी शामिल है, और एक उन्होंने अल्लारखा, संतूर वादक पंडित शिवकुमार शर्मा और बांसुरीवादक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया के साथ एक आर्केस्ट्रा सत्र आयोजित किया।
11 दिसंबर 2012 को शंकर जी की मृत्यु, न केवल भारतीय संगीत बल्कि विश्व संगीत के लिए भी बहुत बड़ी क्षति थी। उनके एक संवाददाता सम्मेलन में, एक पत्रकार ने उनसे पूछा था कि उन्हें विश्व संगीत के गॉडफादर के रूप में वर्णित करने पर कैसा महसूस होता हैं। उन्होंने जवाब दिया , “जो भी इसका मतलब है, मैं किसी भी कोण से मार्लन ब्रैंडो की तरह नहीं दिखता।”
लाखों लोगों ने शंकर जी के संगीत का आनंद और सराहना की है। लेकिन जो लोग उन्हें थोड़ा भी जानते थे, उनके लिए उनका आकर्षण और हास्य स्थायी था। ‘चुंबकीय व्यक्तित्व’ शब्द शायद उनके लिए बनाया गया था।