ब्रिगेडियर जी.बी रेड्डी(सेवानिवृत्त) लिखते हैं- आकार नहीं है, जो मायने रखता है। परंतु जो मायने रखता है वह है लड़ाई का आकार- न केवल राजनीतिक इच्छा शक्ति और सैन्य इच्छाशक्ति परंतु सामाजिक इच्छा शक्ति भी मायने रखती है।
आज की इस तेज तर्रार दुनिया में, सत्ता, शक्ति का सम्मान करती है। सभी आयामों में शक्ति सम्मलित हैं: सामाजिक शक्ति; नरम शक्ति (कूटनीति); कठिन शक्ति (सैन्य); अर्थव्यवस्था; प्रौद्योगिकी; और राजनीतिक इच्छाशक्ति।
सबक न केवल उपरोक्त चर; परंतु, विरोधी के अंतिम उद्देश्यों, तरीकों और साधनों से- उच्च दिशा / भव्य रणनीति और सैन्य रणनीति की पहचान और उनको परिभाषित किया जाना चाहिए। इसके अलावा, यह भी है कि आकार नहीं है, जो मायने रखता है। परंतु जो मायने रखता है वह है लड़ाई का आकार- न केवल राजनीतिक इच्छा शक्ति और सैन्य इच्छा शक्ति परंतु सामाजिक इच्छा शक्ति भी मायने रखती है। इसमें मैं यह भी जोड़ता हूं कि, संख्या नहीं लेकिन गुणवत्ता मायने रखती है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपने अंतिम उद्देश्य- “चीनी स्वप्न”- को याद करते हुए, इसे पृष्ठभूमि में सम्मलित करना चाहते हैं: “चीनी राष्ट्र का महान कायाकल्प प्राप्त करना” “दो शताब्दी” और “चार घटक”। “दो शताब्दी” विशिष्ट हैं: 2021 तक, जब चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी (सी.सी.पी) अपनी शताब्दी का उत्सव मनाये तो एक आधुनिक समाजवादी देश की इमारत को पूरा करे, जो सभी तरह से समृद्ध, मजबूत, लोकतांत्रिक, सांस्कृतिक रूप से उन्नत और शांति पूर्ण हो। 2049 तक, पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पी.आर.सी) का उद्देश्य है कि जब वह अपनी शताब्दी चिन्हित करे, चीन, अपने मजबूत सैन्य के साथ दुनिया की प्रमुख शक्ति बन जाए।
1814 में नेपोलियन बोनापार्ट ने यह भविष्यवाणी की थी: “चीन को सोने दो, जब वह जागेगी तो संसार को हिला देगी। मार्च, 2014 में शी जिनपिंग ने स्वयं, फ्रांस(200 साल बाद) में इस उद्धरण के एक संस्करण का प्रयोग किया: “चीन वो शेर है जो जाग गया है, लेकिन यह एक शांतिपूर्ण, सौम्य और सभ्य शेर है”। बाद में, चीन के एक पूर्व कर्नल ने कहा, ” पूरब में चीन को सोता हुआ शेर कहा जाता था, लेकिन अब हम जाग गए हैं, और शी जिनपिंग शेर के इस समुह का नेतृत्व करने वाले के अग्रणी शेर हैं, जिनमें यह साहस है कि वो किसी भी समय लड़ सकते हैं”।
चीन, अब वो पहेली नहीं रह गयी है जो रहस्यों में लिपटा हो। शी जिनपिंग, चीन के लिए “मध्य साम्राज्य” की महिमा को पुनः प्राप्त करना चाहते हैं। इसलिए, सभी क्षेत्रों में इनके विस्तारवादी आक्रामक प्रक्रिया हैं। और, नीति \ सैन्य रणनीति के प्रतिपादन को सम्मलित किया गया है: “विस्तारवादी माध्यम से वृद्धिशीलता- जो संदेह, आश्चर्य और विस्तारवादी नीति की रस्सियों से बुने है और यह दबाव के अनुकूल है, जिसकी कार्रवाई गैर-कानूनी (salami slicing)है। भारत में कोई भी व्यक्ति ऊपर दिए गए आयामों से भ्रमित ना हों।
पीपल्स लिब्रेशन आर्मी(पी.एल.ए) की वर्तमान नीति, क्रांतिकारी युद्ध के तीन चरणों से गुजरती हैं- रणनीतिक वापसी, रणनीतिक गतिरोध और रणनीतिक आक्रामक। इस प्रकार, विघटन के लिए वर्तमान तालमेल को रणनीतिक आक्रमण को शुरू करने के लिए, अधिक संभावित समय के लिए गतिरोध से उत्पन्न रणनीतिक वापसी के रूप में परिधि के साथ देखने की जरूरत है।
दोनों देशों के बीच, द्विपक्षीय कूटनीति जुड़ाव के बाद सामान्य और लिखित पन्क्तियों पर विशेष प्रतिनिधि वार्ता हुई। यह सभी बहुत ही संतुष्ट और आनंददायक प्रतीत होता है: “दोनों पक्ष, विशेष प्रतिनिधियों की बैठक के तंत्र के माध्यम से संचार को मजबूत करने पर सहमत हो, बिना रुकावट भारत-चीन सीमा विवाद मामले में परामर्श और समन्वय के लिए, कार्यतंत्र के तहत बैठकें आयोजित करे, निरंतर चीन-भारत सीमा मामलों में, आत्मविश्वास के निर्माण को मजबूत और बेहतर बनाने के लिए कदम उठाए एवं सीमावर्ती क्षेत्रों में झड़प की घटनाएं और ना हो, उसके लिए शांति और सद्भाव बनाए।
हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीन के राज्य पार्षद(स्टेट काउंसिलर) और विदेश मंत्री वांग यी ने एक-दूसरे से बात की और इस बात पर सहमत हुए कि “एल.ए.सी पर, दोनों इस बात को सुनिश्चित करे कि अपनी-अपनी सेनाओं को शीघ्र ही पीछे हटा ले और यह भी सुनिश्चित करे कि भारत चीन सीमावर्ती क्षेत्रों से दोनों देशों के सैनिकों का चरणबद्ध और धीरे-धीरे तरीके से विघटन हो जाए, ताकि सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और सद्भावना पूरी तरह बहाल हो सके”।
विघटन वाले चार क्षेत्रों में शामिल हैं: पी.पी 14 (गलवान), पी.पी 15 (हॉट स्प्रिंग), पी.पी 17 ए (गोगरा) और पैंगोंग सो झील क्षेत्र (फिंगर्स 4-फिंगर्स 8 तक)। पीपल्स लिब्रेशन आर्मी(पी.एल.ए) के सैनिकों का फिंगर्स 4-फिंगर्स 8 तक पीछे हटना सामरिक स्तर पर इस बात का वास्तविक प्रमाण होगा। ” लाइन ऑफ एकचुयल कंट्रोल (एल.ए.सी) के बफर जोन(आंचलिक क्षेत्र, जो दो देशों के बीच दो या अधिक क्षेत्रों में आता है) में सैनिकों और गश्तों के संख्या में, कमी को भी लागू करना है।
रणनीतिक और थिएटर आर्ट स्तरों का क्या उद्देश्य हैं- “एल.ए.सी पर सैनिकों का पीछे हटना”? आखिरकार, तिब्बत सैन्य क्षेत्र के 2 माउंटेन डिवीजन और कंबाइंड आर्म्स ब्रिगेड को अपने आगे के, आसन या ठिकानों पर हमलों के लिए जुटाया और तैनात किया गया है, जो आक्रामक हमला शुरू करने के लिए तैयार है। इसके अलावा, इसमें लड़ाकू विमानों, हेलीकॉप्टर, ड्रोन और अन्य बल गुणको को सम्मलित करने के लिए वायु सेना इकाईयों को जरूर शामिल करेंगे।
सिक्किम में सेंट्रल और ईस्टर्न थिएटर से लेकर नाकू ला तक के क्षेत्र में पी.एल.ए की दशा के संबंध में आम जनता को बहुत कम जानकारी है। इस प्रकार, उपरोक्त समझौते को एक बड़ी सफलता के रूप में भू-राजनीति, मध्य और दीर्घकालिक रणनीतिक मामलों के लिए निकट दृष्टि या अल्पसमय वाली दृष्टीकोण को, बड़ी क्रूरता से प्रकट करता है।
अगर “मतभेद”, विवाद नहीं बनता तो ना केवल एल.ए.सी पर विघटन होगा, बल्कि “आक्रामक प्रक्षेपण पैड” पर तैनात, सभी हमलावर सैन्य बल, पीछे हट जाएगी और वो अपने शांति स्थान पर लौट जाएंगी, जो एल.ए.सी पर वास्तविक शांति और सद्भाव को बहाल करने वाला होगा।
तो, हाल के घटनाक्रमों से क्या सबक मिलता है? “समिति या आयोग” बुलाने की कोई आवश्यकता नहीं है। विशेषज्ञ, प्रमुख आवश्यकताओं को विजुअल और प्रिंट मीडिया के सभी आयामों द्वारा समय-समय पर प्रकाशित कर रहे हैं, जिसमें नीचे दिए गए निम्नलिखित बिंदु शामिल हैं:
– खुफिया – भारत-तिब्बत सीमा पर समर्पित सैन्य उपग्रहों द्वारा 24 × 365 से निगरानी रखा जाना है। जिन राष्ट्रों के साथ समझौते स्थापित हैं, उनके साथ खुफिया जानकारी का आदान-प्रदान करना और दूसरे देशों के साथ खुफिया जानकारी के लिए साझेदारी स्थापित करना।
– ठोस शक्ति (सुरक्षा बलों में) सुधार :
- भारत–तिब्बत सीमा सुरक्षा बल:
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- ITBP(इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस, 60 बटालियन) को प्रत्येक 30 बटालियन (भारतीय सेना रक्षा मंत्रालय के तहत) के साथ दो इन्फैंट्री रेजिमेंट के रूप में परिवर्तित किया जाना और इसे लद्दाख रेजिमेंट और अरुणाचल रेजिमेंट के रूप में नामित करना।
- एस.एस.बी (73 बटालियन) को हिमाचल और सिक्किम-भारत-तिब्बत सीमा, यूपी-नेपाल सीमा और भारत-म्यांमार सीमा की रक्षा करने के लिए गृह मंत्रालय के तहत जारी रखना।
- ITBP के बजाय, 40 से अधिक असम राइफल्स बटालियन की टुकड़ियों को इंडियन आर्मी के तहत अरुणाचल प्रदेश-तिब्बत सीमा की सुरक्षा के लिए उन्हें वहां तैनात करना चाहिए और यह क्षेत्र उन्हें पुनः सौंप देना चाहिए।
- स्थानीय लोगों की उच्च ऊँचाई-युद्ध क्षमता के कारण उन्हें लद्दाख और अरुणाचल रेजिमेंट में भर्ती करना; तथा,
- भारत-तिब्बत सीमा के साथ स्थानीय गुरिल्ला रक्षक योद्धा समूहों को व्यवस्थित करना:
2. भारतीय सेना:
- वर्तमान में 17 कॉर्प्स को माउंटेन कॉर्प्स के रूप में नामित किया गया है जो उत्तरी कमांड में स्थित हैं और अभिन्न टास्क फोर्स डिवीजन, लेह में और मनाली-लेह सड़क मार्ग (रोहतांग दर्रे के माध्यम से) उपयुक्त स्थानों पर स्थित है।
- सेकेंड माउंटेन कॉर्प्स का पुनः वर्गीकरण द्वारा उदय करना ताकि उसे ईस्टर्न थिएटर के पहाड़ों पर स्थापित किया जा सके।
- बंदूकों और लंबी दूरी के गोला- बारूद का, अति शीघ्र स्वदेशी उत्पादन।
3. ट्राइ–सर्विस कमांड, ए & एन द्वीप: वायुसेना के रूप में कैंपबेल बे और नेन कौड़ी द्वीपों का तत्काल विकास और सुखोइ 30MKI / तेजस और सबमरीन के लिए सतह से वायु मिसाइलों और ब्रह्मोस शोर-टू-शिप पर आधारित मिसाइलों के लिए नौसेना के ठिकाने बनाना।
- वायु सेना:
- चौबीसों घंटे, काम करके सुखोइ 30MKI, राफेल, तेजस MK1A और Mk2 का स्वदेशी उत्पादन; और एफ -35 लड़ाकू विमान का अधिग्रहण जो लंबित है, उसके स्टेल्थ फाइटर लड़ाकू विमानों की संरचना और विकास करना।
- रूस से S-400 मिसाइल सिस्टम का अतिशीघ्र अधिग्रहण और लद्दाख में तैनात करना।
- जेट लड़ाकू विमानों के लिए अस्त्र (ए.एस.टी.आर.ए) और ब्रह्मोस बी.वी.वी.आर.एम मिसाइलों का स्वदेशी उत्पादन।
5. नौसेना: आदेशानुसार, पनडुब्बियों और अन्य जहाजों का तेजी से स्वदेशी उत्पादन।
ऊपर दी गई सूची, राजनीतिक पदानुक्रम के द्वारा तेजी से कार्रवाई करने के लिए विचारोत्तेजक है; और इसमें सभी को शामिल करना आवश्यक नहीं है। वित्तीय बाधाएं, अब इसमें और देरी नहीं कर सकती। यहां तक कि सेना के तीनों बलों को, छोटे /बड़े सारे कार्य जैसे इमारतों, सड़कों और चार दीवारों के निर्माण पर, आवश्यक प्रतिबंध लगा देना चाहिए जो “मेजर/ माइनर वर्क्स” के प्रमुख के तहत आते हैं, ताकि जंगी करवाई की आवश्यकता को पूरा करने के लिए एक-एक पैसा बचाया जा सके।
राष्ट्रपति भवन , प्रधानमंत्री और अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों के फालतू खर्चो और मुख्यमंत्रियों और राज्य सरकारों के महत्वाकांक्षी परियोजनाओं के अत्याधिक खर्चों पर कठोर नियंत्रण के बारे में क्या समीक्षा की गई है। राष्ट्र को इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि राष्ट्र के सशस्त्र बलों को आधुनिकीकरण की खातिर, उन्हें अत्याधिक वित्तीय अपव्यय पर सख्त नियंत्रण करना होगा।
सामाजिक शक्ति : सीमाओं पर “युद्ध जैसी” स्थिति के समय में तुच्छ कारणों को उजागर करने वाले विपक्षी दलों द्वारा आलोचना, देश की राष्ट्रीय एकता के विरुद्ध है। समाज के आंतरिक विभाजन के सड़ांध को दूर करने के लिए, सत्ताधारी पक्ष, संसद-सत्र को बुला सकती है और वर्तमान स्थिति और अनुमानित आवश्यकताओं के विवरण पर विस्तार से चर्चा कर सकती है। इसके अलावा, विरोधियों द्वारा किए गए “प्रभाव संचालन” को प्रभावी ढंग से मुकाबला करने की आवश्यकता है।
आर्थिक शक्ति : चीन से होने वाले व्यापार पर अस्थायी प्रतिबंध, विशेष रूप से “डिजिटल फ्रंट” पर, काफी महत्वहीन दिखाई दे सकता है; लेकिन जब अमेरिका, जापान और अन्य देशों द्वारा चीन के खिलाफ व्यापार-युद्घ को, समग्र संदर्भ में देखा जाए, तो यह चीन के लिए शोभायमान है। किसी भी तरह से, केंद्र सरकार को व्यापार पर, रोक या प्रतिबंध नहीं हटाना चाहिए। इसके बजाय, सत्तारूढ़ शासन को स्थानीय व्यापार एजेंसियों को प्रोत्साहित करना चाहिए और उनकी क्षमताओं को सक्रिय रूप से बढ़ाने के लिए वित्तीय सहायता शुरू करनी चाहिए।
प्रौद्योगिकी शक्ति : हालांकि, भारत, बड़ी संख्या में योग्य वैज्ञानिक युवाकर्मियों के होने का दावा करती हैं, परंतु हम, अभी भी पिछड़े हुए हैं। इसरो, डी.आर.डी.ओ, आई.आई.एस, आई.आई.टी और अन्य संस्थानों जैसे विभागों को निजी उद्यमों के सहयोग से इसकी संरचनाएं, विकास और स्वदेशी रूप से सभी क्षेत्रों में नए उच्च तकनीकीयों का उत्पादन करना चाहिए। जब देश, चीनी समकक्षों के द्वारा, चतुराई से मात खा जाते हैं तो देश को “सॉफ्टवेयर पावर” पर अत्याधिक गर्वित होने की कोई आवश्यकता नहीं है।
अंततः, राजनीतिक इच्छा शक्ति को, उपकथा के रूप में अभिव्यक्त करना निश्चित रूप से अच्छा है, विशेष रूप से फ्रंट लाइन सैनिकों के आत्मबल को बढ़ाने के लिए। लेकिन राष्ट्रीय शक्ति के अन्य सभी चर में सफलताओं द्वारा शीघ्रता से मिलान करने की आवश्यकता है। चाइनीज़ सेंटर ऑफ़ ग्रेविटी, अंडमान और निकोबार द्वीप क्षेत्र में स्थित है, जहाँ से ग्रेट चैनल का फैलाव होता है, जिसके द्वारा लगभग 80 प्रतिशत चीनी व्यापार का पारगमन होता है। सैन्य संरचनाओं में तीव्र गति से विकास की महत्ता सबसे अधिक है।
यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है कि वो व्यक्तिगत रूप से सभी विज्ञान और प्रौद्योगिकी इकाइयों का दौरा करे और उनकी स्थिति को सुनिश्चित करे और एवं यह निर्देश दे कि ‘समय-सीमा’ के आधार पर परियोजनाओं को समाप्त करे। आखिरकार, आज हम “प्रौद्योगिकी युग” में जी रहे हैं। भारत, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में पिछड़ा रहा जाएगा, जब तक कि वैज्ञानिक समयबद्ध तरीके से नयावेश, रचना और चीजों को ढंग से नहीं करेंगे और, साथ ही साथ शिल्पविज्ञानी, प्रौद्योगिकियों का हस्तांतरण, निजी भागीदारों को नहीं करेंगे, तब तक यह भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा हितों को प्रभावित करता रहेगा।
यहाँ व्यक्त विचार लेखक के हैं, और जरूरी नहीं है कि वो SENIORS TODAY पत्रिका के प्रकाशक और संपादकों का प्रतिनिधित्व करें