ब्रिगेडियर अजित आप्टे (सेवानिवृत्त) लिखते हैं कि 1999 के कारगिल संघर्ष के दौरान, लेफ्टिनेंट परवेज मेहदी पाकिस्तानी वायु सेना के वायुसेना प्रमुख बने
सोमवार, 22 नवंबर 1971, खिली हुई धूप के साथ एक सुहाना दिन था, सिर्फ इस बात को छोड़कर कि पाकिस्तानी वायु सेना (पी.ए.एफ) के साथ हम कठिन दौर से गुजर रहे थे, क्योंकि पाकिस्तानी वायु सेना के विमान हमारे इलाके में निरंतर दौरा कर रहे थे। आर्टिलरी फील्ड बैटरी (Bty)– 14 फील्ड रेजिमेंट (Regt) के 25 पाउंडर गनस के गन पोजिशन ऑफिसर (जी.पी.ओ) के तौर पर मैंने सिर्फ 10 महीने की सेवा की थी। पूर्वी पाकिस्तान के उत्तर–पश्चिम भाग पर बोयरा सालिएंट के पास, हम पूर्वी मोर्चे पर तैनात थे। यह लगभग दोपहर 2.40 मिनट (1440h) का समय था, जब Adjt कैप्टन सपत्नेकर ने हमें ये आदेश दिया कि हमारी वायुसेना की टुकड़ियां युद्ध के लिए तैयार रहे।
एंटी एयरक्राफ्ट(Ack-Ack) की भूमिका में सभी बंदूकों को चलाने के लिए सैनिक रखने थे और लाइट मशीन गन (एल.एम.जी) को तैनात किया जाना था। हम फिर से दुश्मन के हवाई हमलों का सामना कर रहे थे। जहां हम पूर्वी पाकिस्तान में ग़रीबपुर की लड़ाई के लिए आर्टिलरी सहयोग प्रदान कर रहे थे, वहीं, दुश्मन हम पर हवाई हमले कर रहा था। हमारी आक्रामक मुद्रा ने संभवत: पी.ए.एफ 14 स्क्वाड्रन (Sqn) को उकसा दिया, हमारे डिवीजन सेक्टर पर तैनात किए गए सैन्य एवं सैन्य संपत्तियों और सैनिक प्रबंधों पर हमला करने के लिए। 21 नवंबर को डिवीजनल सेक्टर में हमारे लड़ाकू विमान को(एयर क्राफ्ट, ए.सी) कवर देने के लिए भारतीय वायुसेना ने हमारे अनुरोध को, पहले अस्वीकार कर दिया था। सम्भवतः, इसलिए क्योंकि आधिकारिक तौर पर युद्ध की घोषणा नहीं की गई थी।
दिन की शुरुआत में, मैंने सेबर्स (पाकिस्तानी वायु सेना का लड़ाकू विमान, पी.ए.एफ, एफ86) को हमारी स्थिति पर हाई डाइव करते देखा था। सेबर्स( पाकिस्तानी वायु सेना का लड़ाकू विमान, पी.ए.एफ, एफ86) में से एक, मेरी आर्टिलरी बैटरी और संलग्न एक दूसरे जी.पी.ओ लेफ्टिनेंट गेब्रियल परेरा के आर्टिलरी बैटरी के बीच से, ठीक पेड़ की चोटी के स्तर पर उड़ रहा था। दोपहर के लगभग 2.45 बजे, मैंने इन सेबर्स को लगभग 2000 फीट की ऊँचाइयों पर उड़ते हुए देखा, जो नीचे आते हुए लगभग 500 फीट पर हथियारों को छोड़ने के लिए रुके, जैसा कि दूसरे विश्वयुद्ध में जर्मनी के स्टुका बॉम्बवर्स ( जर्मनी की वायुसेना का लड़ाकू विमान) ने किया था।
हमारे (Ack-Ack)एंटी एयर क्राफ्ट गन की भूमिका पर (LMGs) लाइट मशीन गन और एयर डिफेंस गन बहुत प्रभावी नहीं थे, लेकिन हम उनके विमानों से निकलते हुए सफेद धुएँ को देखकर खतरों को रोकने की कोशिश कर सकते थे। मैंने स्पष्ट रूप से, अपनी आर्टिलरी गनस क्षेत्र के पूर्व से, तीन पाकिस्तानी सेबर्स लड़ाकू विमानों को देखा, जो अपने मिशन को पूरा करने के लिए, बहुत कम ऊँचाई से, अचानक से हम पर टूट पड़े। तभी, कुछ सेकंड के भीतर, मैंने, मेरे आर्टिलरी गन क्षेत्र से पश्चिम दिशा की ओर चार लड़ाकू विमानों, एंटी एयर क्राफ्ट(Ack-Ack)को जाते देखा, जो संरचना को चीरते हुए एक मिशन के तहत, पहले हमारी तरफ बढ़ा, लेकिन तीव्र गति से शत्रु के लड़ाकू विमान की तरफ मुड़ गया, जो शुरुआत में हमें नष्ट करने के लिए हमारी ओर बढ़ रहा था। सेबर्स लड़ाकू विमान इस बात से बिल्कुल अंजान थे कि चार Gnats, भारतीय लड़ाकू विमान उनकी तरफ बढ़ रहे हैं, उन्होंने अपना डाइव अटैक जारी रखा। यह हमारे लिए स्पष्ट था कि हमारी भारतीय वायुसेना (आई.ए.एफ) वायु युद्ध से जुड़ गई थी। हम अपने बंकरों और खाइयों से बाहर निकले और इस हवाई करवाई को देखने के लिए आसमान की ओर देखने लगे। हमारे फॉरवर्ड एयर कंट्रोलर (एफ.ए.सी) फ्लाइट लेफ्टिनेंट शरद सावुर(जो बाद में वायुसेना के एयर मार्शल बने ए.ओ.सी– सी), 350 इन्फैंट्री ब्रिगेड और 4 सिख रेजिमेंट, जो मेरे रेजिमेंट के आने से पहले से ही मौजूद था। 1 जे.ए.के राइफल्स और इन्फैंट्री ब्रिगेड के 26 MADRAS बटालियन ऐसे अन्य रेजिमेंट थे, जिन्हें हमसे पहले तैनात किया गया था। मेरी आर्टिलरी रेजिमेंट, 350 इन्फैंट्री ब्रिगेड को सीधी सहायता पहुँचा रही थी।
इससे पहले उसी दिन- 22 नवंबर को – लगभग 10:00 बजे, पी.ए.एफ सेबर्स लड़ाकू विमान के दो मिशन (एम.एस.एन) थे। हमारे Gnats ने लड़ाकू विमानों का पीछा किया, लेकिन समय पर लक्ष्य क्षेत्र तक नहीं पहुंच पाया। वो उनपर हमला नहीं कर पाए और मायूसी के साथ वापस लौट आए। विंग कमांडर सिकंद, भारतीय वायुसेना में 22 स्क्वाड्रन (sqn) आई.ए.एफ के कमांडिंग ऑफिसर(सी.ओ) थे, जिन्होंने पहले दो सॉर्टियों(दो लड़ाकू विमानों का) का नेतृत्व किया था। इसके पश्चात, वह दोपहर के बाद बाहर निकल गए और नेतृत्व को फ्लाइट लेफ्टिनेंट, रॉय एंड्रयू मैसी को सौंप दिया, जिसमें उनके उपाध्यक्ष के रूप में फ्लैग ऑफिसर, सुनीथ सोरेस थे। फ्लाइट लेफ्टिनेंट, गणपति और फ्लैग ऑफिसर, डॉन लाजर ने अपने पदों को क्रमशः 3 और 4 की संख्या पर बरकरार रखा था। तब, फाइटर कंट्रोलर, फ्लैग ऑफिसर, बागची थे। फाइटर कंट्रोलर और ओ.आर.पी( ऑपरेशनल रीडीनेस प्लेटफॉर्म- जो दुश्मन के जहाजों को सीमा में घुसने का पता लगाती है) पायलट सभी, अपनी जगह मौजूद थे।
पूर्वी मोर्चे पर काफी सुकून भरा माहौल था। सुनीथ फ्रांसिस सोरेस और डॉन लाजर, स्क्रैबल(एक खेल) खेल रहे थे। लगभग दोपहर के (1440h) 2.40 बजे का समय था, जब अचानक से क्लेक्सन मशीन( चेतावनी देने वाला मशीन) घुसपैठ की चेतावनी देते हुए जोर से बजना शुरू कर दिया। हमारे रडार ने दोपहर के 1440h पर शत्रु के तीन लड़ाकू विमानों सेबर्स के घुसपैठ की सूचना दी। एक मिनट के भीतर ही कोलकाता के दमदम हवाईअड्डा के ऑपरेशनल रीडीनेस प्लेटफॉर्म से हमारे चार लड़ाकू विमान Gnats,चढ़ाई के लिए निकल गए। कुछ ही मिनटों में, Gnats ने रुकावटों को चीरते हुए, तीव्र गति से आकाश में नीचे स्तर पर सनसनाते हुए सेबर्स पर चढ़ाई कर दी।
घमासान लड़ाई–
हमारे Gnats अंतरराष्ट्रीय सीमा(आई.बी) तक पहुंच गए और फिर, बागची ने मैसी ( एयर डिफेंस इंटरसेप्टर रेडियो चैनल पर) को बताया कि दुश्मन 2 क्लॉक 4 नॉटिकल माइल्स पर उड़ रहे हैं, मैसी ने उनके संपर्क का जवाब दिया, मैं उन्हें ऊपर आते देख रहा हूं। दाहिनी दिशा में होने के कारण, गणपति और डॉन, दुश्मन के लड़ाकू विमानों को नहीं देख सकते थे। सोरेस ने दुश्मन की लड़ाकू विमान को तीन किलोमीटर की दूरी पर देखा, जो अब गोता लगाने के लिए शुरू हुआ। सोरेस ने संपर्क साधा और मैसी ने दुश्मन की लड़ाकू विमान को देखा, तब उन्होंने दुश्मन की लड़ाकू विमान Ack-Ack के पीछे पैंतरेबाज़ी करते हुए, फ्लैंक जोड़ी पर अपने विमान को खींचा। तब, सोरेस ने उड़ान मार्ग पर चल रही टिप्पणी को बहुत प्रभावी ढंग से दिया। इसी बीच, सेबर ने बच निकलने की कोशिश की, लेकिन मैसी ने अपने Gnats विमान से, जिसके फायरिंग रेंज में सेबर्स था, उस पर हमला कर दिया। उसने एक छोटी तोप से हमला किया, पर यह लक्ष्य से चूक गया। लेकिन मैसी ने सेबर का जल्दी से पीछा करते हुए, एक अन्य तोप छोड़ा, जो सेबर के दाहिने पंख पर जाकर टकराया, जिसे हमने हवाई जहाज के ढांचे के पास देखा। दुश्मन पायलट, शीघ्र ही प्लेन से ईजेक्ट हुआ। दूसरे सेबर्स ने 1800 फीट की ऊँचाइयों पर दूसरा गोता लगाया और नीचे आते हुए लगभग 500 फीट की ऊँचाई से हमारे स्थानों पर हमला किया।
जैसे ही, सेबर्स(दुश्मन का लड़ाकू विमान) ने हमले से बचने की कोशिश की, वैसे ही मैसी, सोरेस, लाजर और गणपति, सेबर्स पर टूट पड़े (जैसे एक भूखा बाघ अपने शिकार को देखकर टूट पड़ता है )। जब फ्लैग ऑफिसर सोरेस युद्ध में थे, उन्होंने फ्लाइट लेफ्टिनेंट गणपति को यह कहते हुए सुना था कि उन्होंने एक सेबर्स देखा, तो वो पैंतरेबाज़ी करते हुए दुश्मन के लड़ाकू विमान पर हमला करने के लिए गणपति के पीछे आ गए। हालांकि, वह लक्ष्य से चूक गए। तभी, 200 गज की दूरी पर, डॉन और गणपति के विमानों पर हमला करने के लिए, एक तीसरा सेबर आ गया। फ्लैग ऑफिसर डॉन लाजर, अब दुश्मन की रेखा में आ गए थे और उन्होंने, दुश्मन के लड़ाकू विमानों पर हमला कर दिया। डॉन की सजगता और पैंतरेबाज़ी की कुशलता इतनी शानदार थी कि इस योग्यता के कारण, उन्होंने लक्ष्य को तोप से भेद दिया। इस वज़ह से, शत्रु के लड़ाकू विमान में धमाका हुआ और उसका मलवा, डॉन के लड़ाकू विमान की नाक पर और ड्रॉप टैंक पर आकर टकराया। इसके बाद, सेबर में बैठे शत्रु पायलट ने स्वयं को बाहर ईजेक्ट किया। यह, फ्लाइट लेफ्टिनेंट, परवेज मेहदी था। हम जमीन पर खड़े, उसे नीचे आते देख रहे थे और तैयार थे, उसका स्वागत करने के लिए। गणपति ने बाद में दुश्मन के तीसरे लड़ाकू विमान पर सटीक हमला किया और तोप, शत्रु विमान के दाहिने पंख पर जाकर टकराई और आग लग गई। लेकिन, शत्रु का यह लड़ाकू विमान सम्भवतः बच निकला और अपने बेस पर लौट गया। इसी बीच, फ्लाइट लेफ्टिनेंट गणपति और फ्लैग ऑफिसर डॉन लाजर, दोनों ने एक-एक शत्रु लड़ाकू विमान देखा। शत्रु के दोनों विमानों को मार गिराने के लिए, वे अलग-अलग हो गए।
हमने जमीन पर से जो देखा, वह यह था कि दुश्मन के एक लड़ाकू विमान पर, दो Gnats, एक जोड़ी के रूप में हमला कर रहे थे और एक अन्य Gnats की जोड़ी ने पहले स्वयं को अलग किया और फिर दोनों ने ही दुश्मन के एंटी एयर क्राफ्ट (Ack-Ack) विमान पर गोलियां चलाना शुरू कर दी। अंततः, दो शत्रु लड़ाकू विमानों को मार गिराया गया और दो पैराशूट जमीन पर आकर ढेर हो गए। यह याद करने वाला दृश्य था– मुझे अब स्मरण होता है कि एक तीसरा शत्रु लड़ाकू विमान, जो अपने पीछे धुआं छोड़ते जा रहा था, वहां से भाग खड़ा हुआ और सम्भवतः अपने बेस पर लौट गया। हमें अगले दिन पता चला कि वह शायद पाकिस्तानी वायुसेना के 14 स्क्वाड्रन पी.ए.एफ के मिशन लीडर विंग कमांडर, चौधरी थे। यह घमासान लड़ाई एक पल में खत्म हो गई। हमारे Gnats विमानों ने, हमारे ऊपर विक्ट्री रोल किया और घर वापस लौट गए।
कुछ ही मिनटों में, ऑल इंडिया रेडियो और समाचार पत्रों ने इस खबर की और राष्ट्र के पहले तीन गैलेंट्री पुरस्कार की घोषणा कर दी। फ्लाइट लेफ्टिनेंट मैसी, फ्लाइट लेफ्टिनेंट गणपति, फ्लैग ऑफिसर डॉन लाजर को वीरचक्र(VrCs) और फ्लैग ऑफिसर बागची को वी.एम पुरस्कार(यह पुरस्कार दो हिस्सों में बांटा गया है- कार्य के प्रति निष्ठा और युद्ध में साहस के लिए दिया जाता है) से सम्मानित किया गया। राष्ट्र, जो पढ़ रहा था या सुन रहा था, वो परोक्ष था। हमने इस लड़ाई को अपनी आँखों के सामने घटित होते हुए देखा था और हम इस हाई वोल्टेज ड्रामे का हिस्सा भी थे। दोनों पाकिस्तानी पायलट अपने विमान से ईजेक्ट होने के बाद पैराशूट से जमीन पर उतरे। उनमें से एक पायलट, हमारे 4 सिख रेजिमेंट में उतरा, वह था फ्लाइट लेफ्टिनेंट परवेज मेहदी (तब, वहां पर कैप्टन एच.एस पनाग मौजूद थे, जो बाद में चलकर आर्मी कैडर के लेफ्टिनेंट जनरल बने), जो अपने बटालियन का Adjt था; कैप्टन पनाग ने, शुरुआत में ही पायलट परवेज मेहदी को गिरफ्तार कर लिया और सैनिकों द्वारा नरसंहार से बचा लिया।
फ्लैग ऑफिसर, खलील अहमद, ईजेक्ट होने वाले दूसरे पायलट थे, जो फर्स्ट जे. एंड के. राइफल्स( जम्मू-कश्मीर राइफल्स) पर उतरे थे, जहां कैप्टन शर्मा, हमारे रेजिमेंट ऑब्जर्वेशन पोस्ट ऑफिसर (ओ.पी) ने, उन्हें बटालियन (bn) द्वारा कब्जा करते हुए देखा। तब, इन दोनों पायलटों को हमारे 14 फील्ड रेजिमेंट में भेजा गया था, जो रेजिमेंट के पाश्र्व भाग में, लगभग 1500 मीटर पीछे था। मैं, रेजिमेंट कमांड पोस्ट (आर.सी.पी) के सबसे निकट था और इसलिए मुझे, अन्य जी.पी.ओ, लेफ्टिनेंट, गेब्रियल पेरेरा के साथ बुलावा भेजा गया। सेकेंड इन कमांड (2IC), मेजर वासुदेव कृष्णा और Adjt कैप्टन जय सपत्नेकर ने हमसे कहा कि हमें युद्धबंदी पायलटों के आने पर उपस्थित रहना है, जब एक बार वो हमारे स्थान पर पहुंच जाए। दोनों पकड़े गए पायलटों में से, फ्लाइट लेफ्टिनेंट परवेज मेहदी वरिष्ठ थे और वो थोड़ा घायल भी हो गए थे। परंतु, सौभाग्य से, कैप्टन एच.एस पनाग ने उन्हें और घायल होने से बचा लिया और वहीं, बटालियन में प्राथमिक चिकित्सा दी। पूरे सम्मान के साथ दोनों पायलटों के साथ हमने बहुत सद्व्यवहार किया। उन्हें चाय और सिगरेट दी गई। खलील अहमद ने पुष्टि की कि वो हमारी Gnats लड़ाकू विमान और बेहतर हथियार एवं पायलटों की पैंतरेबाज़ी की कुशलता से आश्चर्यचकित थे। वे जमीनी हमलों से चोटिल नहीं हुए थे, जैसा कि कुछ लोगों ने अनुमान लगाया था। उन्होंने हमें बताया कि हमारे गन, टैंक और अन्य विवरणों का निस्तारण मुक्तिबाहिनी (बांग्लादेश की सेना) द्वारा दिया गया था। मैंने, परवेज मेहदी के शूटिंग मैप को उनके फ्लाइंग सूट पर देखा। इस पर मैंने नोट किया कि हम लाल रंग में, दुश्मन के रूप में चिह्नित किए गए थे। उनकी सूची में हम भी एक लक्ष्य थे, जहां उन्हें बमबारी करनी थी। हमारी बंदूकें, टैंक और इंजीनियर पुल, उनके मुख्य लक्ष्य थे। परवेज ने कहा कि वो हमले के लिए लक्ष्य को इंगित नहीं कर सके, क्योंकि सटीक स्थानों का पता लगाना कठिन था, जिसका कारण था- हमारा छलावरण और आश्रय। वो हमारे, एयर डिफेंस गन के एंटी एयर क्राफ्ट (Ack-Ack) हमले की कार्रवाई से भी डरते थे।
हमारे सेकेंड-इन-कमांड(2IC) और Adjt ने उनसे कुछ प्रश्न पूछे। परवेज मेहदी और खलील अहमद, दोनों ने निवेदन किया कि हम उन्हें मुक्तिवाहिनी(बांग्लादेश की सेना) को ना सौंपें। नहीं, अब आप युद्ध बंदी(Pow) हैं और आपके साथ सिर्फ हमारे द्वारा ही निपटा जाएगा। फिर, परेरा और मैंने, दोनों दुश्मन पायलटों की आंखों पर पट्टी बांधी। एक उचित सशस्त्र अनुरक्षण के तहत हमने, उन्हें अपने रेजिमेंटल वाहन में इन्फेंट्री ब्रिगेड भेजा। 350 इन्फेंट्री ब्रिगेड के ब्रिगेड मेजर, जी.बी रेड्डी, इन युद्धबंदियों की प्रतीक्षा कर रहे थे ताकि वो आगे की कार्यवाही कर सके, जैसा भी वो उचित समझे। तब, मैं नहीं जानता था कि मैंने पाकिस्तानी वायु सेना के भावी वायुसेना प्रमुख की आंखों पर पट्टी बांधी है।
युद्ध बंदियों का दिल्ली के लिए फ्लाइट– जेनेवा कन्वेंशन के अनुसार, दोनों शत्रु पायलटों के साथ अच्छा व्यवहार किया गया। मुझे बहुत बाद में पता चला कि मेरे एन.डी.ए कोर्स के साथी की एक जोड़ी, पायलट ऑफिसर्स प्रदीप कपूर और टी.वी अब्राहम के साथ, फ्लैग ऑफिसर जी.एस भुल्लर, जो डकोटा (डी.सी-3) कारनिकोबार-रंगून बैरकपुर कलकत्ता कूरियर, के कैप्टन थे, दोनों युद्धबंदी पायलटों को उचित अनुरक्षण के साथ दिल्ली लाया गया। उनके साथ, हमारे भारतीय वायुसेना के अधिकारी भी थे। प्रदीप कपूर ने कहा कि परवेज मेहदी ने पूरी उड़ान के दौरान चुप्पी साध रखी थी, लेकिन खलील अहमद बहुत बातूनी और आसान थे। कलकत्ता के प्रसिद्ध ग्रेट ईस्टर्न होटल से लाया गया भोजन, रात्री भोजन के रूप में युद्ध बंदियों को दिया गया। खलील अहमद ने रात के खाने का आनंद लिया, लेकिन परवेज मेहदी ने कुछ भी खाने से मना कर दिया। दिल्ली पहुंचने पर अधिनियम के अनुसार, युद्धबंदियों को सौंप दिया गया।
युद्ध के दिग्गजों का पुनर्मिलन समारोह
बाएँ से दाएं: फ्लैग ऑफिसर / विंग कमांडर भागवत, फ्लैग ऑफिसर / विंग कमांडर, मिलिंद बलीगा, कैप्टन / ब्रिगेडियर जय सपत्नेकर, फ्लैग ऑफिसर/ ग्रुप कैप्टन सुनीथ सोरेस, लेफ्टिनेंट कर्नल / कर्नल आर.पी सहस्रबुद्धे, कमांडिंग ऑफिसर युद्ध के दौरान 14 फील्ड रेजिमेंट, 2 / लेफ्टिनेंट / ब्रिगेडियर अजीत आप्टे और फ्लैग ऑफिस / जी.पी कैप्टन डॉन लाजर
यह बहुत बड़ा संयोग था कि अक्टूबर 2017 में, मैं, ग्रुप कैप्टन (Gp Capts) डॉन लाजर, ग्रुप कैप्टन(Gp Capts) सुनीथ सोरेस और एयर मार्शल शरद सवुर के साथ फोन पर संपर्क स्थापित कर सका। विंग कमांडर(Wg Cdrs) मैसी और विंग कमांडर(Wg Cdrs) गणपति कहीं दूर खो गए थे, हाय क्या अफ़सोस की बात थी। उसी स्क्वाड्रन के 34वें एन.डी.ए के विंग कमांडर, मिलिंद बलीगा और भागवत से भी संपर्क किया गया। मैं, 40वें एनडीए के ग्रुप कैप्टन, राजीव केतकर, जो मेरे स्कूल के कनिष्ठ सहकर्मी थे, उन्हें मैं अवश्य धन्यवाद देता हूँ, जिनके कारण ऐसा हो सका। हमने उसी साल दिसंबर में, पुणे में पुनर्मिलन समारोह की योजना बनाई।
विजय दिवस के मौके पर, 16 दिसंबर 2017 को, 1971 युद्ध के, हमारे 14 फील्ड रेजिमेंट के सभी युद्ध दिग्गजों( अब पुणे में सेवानिवृत्त), हम, कर्नल सहस्रबुद्धे, ब्रिगेडियर जय सपत्नेकर और स्वयं मैंने, वायुसेना के अधिकारियों को बियर और लंच के लिए RSAMI, हमारे पुणे के अधिकारी संस्थान में आमंत्रित किया और मेजबानी की। हमने, नवंबर 1971 में, उस यादगार घटना की पर्चियों का आदान-प्रदान किया था, क्योंकि यह उस दिन हवा और जमीन दोनों में प्रकाशित हो गया था। शहर से बाहर होने के कारण, कर्नल गेब्रियल परेरा, पुनर्मिलन समारोह में शामिल नहीं हो सके। यह हमारे भारतीय वायुसेना के वायु योद्धाओं के लिए हमारा धन्यवाद था, जो निस्संदेह, विश्व में सबसे अच्छा है।
(मेरे साथ वायु युद्ध के बारे में चर्चा करने के लिए ग्रुप कैप्टन (Gp Capts) सुनीथ फ्रांसिस सोरेस और डॉन लाजर को मेरा ईमानदारी से धन्यवाद। यह मेरे साथ मैदान पर हमारे द्वारा देखी गई घटनाओं के साथ संयोजन करने में सक्षम है।)
1999 के कारगिल संघर्ष के दौरान, फ्लाइट लेफ्टिनेंट, परवेज मेहदी, पाकिस्तानी वायुसेना के वायु सेना प्रमुख बने। ग्रुप कैप्टन(जी.पी कैप्टन) डॉन लाजर ने, परवेज मेहदी को पाकिस्तानी वायुसेना के वायु प्रमुख के रूप में पदोन्नति पर, एक बधाई पत्र लिखा। उस पत्र में उन्होंने, 1971 में हुए एरियल कॉम्बैट के दौरान, उन्हें उनकी एकमात्र, एक पिछली, मुलाकात की याद दिलाई। डॉन लाजर ने उनकी सफलता की कामना की। ए.सी.एम(एयर चीफ मार्शल) परवेज मेहदी ने ग्रुप कैप्टन डॉन लाजर को दिए, अपने जवाब में विधिवत रूप से स्वीकार किया और उन्हें धन्यवाद दिया। इस यादगार घटना को घटे लगभग आधी शताब्दी बीत चुकी है, लेकिन यह मेरी यादों में अंकित है। मैं, उस दिन युद्ध में जीवन के वास्तविक ड्रामा का गवाह बना।