पहला क्रश, पहला चुंबन और पहली बार, और आपका पहली बार दिल टूटना सदा के लिए आपकी यादों में बस जाता है- विक्रम सेठी द्वारा
प्यार के सभी अनुष्ठान, सम्भवतः पहला डेट सबसे उच्च कोटि का होता है। पहला क्रश, पहला चुंबन और पहली बार हमेशा की यादें बन जाती है। 1970 के दशक में डेटिंग, एक बहुत कठिन मामला था। एक लड़की के लिए, डेटिंग का उद्देश्य था शादी के लिए अच्छी जोड़ी ढूंढना, जबकि लड़के का इरादा, सम्भवतः अच्छा समय बिताना था। व्यावहारिक रूप से, 90% डेटिंग के अवसर महाविद्यालय परिसर में उत्पन्न होते थे। एक लड़का, एक लड़की को कॉलेज सोशल में साथ जाने के लिए पूछता और ये बाद में फिल्म या कॉफी तक जाता। यह एक समूह गतिविधि के रूप में भी शुरू होता था- लड़के और लड़कियां एक साथ बाहर जाते थे और अंततः एक जोड़ी, एक-दूसरे को पा लेते थे। अगर, एक लड़के के पास कार या बाइक है तो यह उसके पास एक अतिरिक्त लाभ होता था। लगभग दो से तीन बार आउटिंग पर साथ जाने के बाद लड़की का हाथ पकड़ पाते थे और अगर लड़की यकीन करती कि लड़का उससे शादी करेगा, तो उसे गले लगाने और चुंबन की अनुमति मिलती थी।
बड़ा भय
सेक्स का कोई प्रश्न ही नहीं उठता था। गर्भवती होने और मर्यादा खोने का डर, उस समय लड़की के लिए बहुत बड़ी बात थी- ” क्या होगा अगर लड़का मुझ से फेनर करता है”। उन दिनों में, फेनर एक कंपनी/ संगठन थी, जो प्रशंसकों का समूह बनाती थी और उनका टैगलाइन होता था- “फिट एंड फॉरगेट”, फेनर एक कोड था(F *** and Forget)। बहुत सारे लड़के सेक्स करने के बारे में बहुत बढ़ा चढ़ा कर बातें करते थे, जबकि 90% लड़के सिर्फ फालतू की बातें करते थे। कोई भी लड़की किसी लड़के के साथ तब तक नहीं सोती थी, जब तक वह उसकी उंगली पर अंगूठी नहीं पहना देता। हालांकि, एक लड़के की मर्दानगी/ माचो-नेस, इस बात पर आंकी जाती थी कि वो कितनी लड़कियों को पा सकता है या कौन सी लड़की उसके साथ बाहर जाना चाहती थी। और बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता था कि लड़का कितना पैसा खर्च कर सकता है और उसके पास बाइक या कार है या नहीं।
हर एक महाविद्यालय में, एक ऐसे समारोह होता था, जहां लड़के और लड़कियां साथ मिलते , नाचते और नए मित्र बनाते थे। ऐसा समारोह, साल में दो बार आयोजित किए जाते थे। उन दिनों, लड़कों का एक सामान्य कहावत था- “नई गिल्ली नया दावं”- गिल्ली डंडा की कला। तो, डेट पर कोई कहां जाता था? आदर्श रूप से, डेट पर सिनेमाघरों में कोने की सीटें लेते थे- स्ट्रैंड, रीगल, न्यू एम्पायर या एरोस। लेकिन, जोड़ी अगर आलिंगन के मनोदशा में है- तो ओपेरा हाउस का बॉक्स, पुराना एक्सेलसियर थिएटर, बोरिवली नेशनल पार्क या एक छोटा ईरानी रेस्तरां, जिसमें एक पारिवारिक कमरा था, अच्छी जगह थी। फिर, इसके बाद आता है बी.के.सी में ड्राइव–इन थिएटर और अगर आप खर्च बर्दाश्त कर सकते हैं, तो काला घोड़ा के डिस्को में जाते, जिसे Bullock Cart कहा जाता था- यहां नरक जितना अंधेरा था- यह सुबह 10 बजे खुलता था- हाँ, सुबह।
लड़कों और लड़कियों के बीच संचार अत्यंत कठिन था। तब कोई मोबाइल नहीं होता था और कुछ घरों में लैंडलाइन थी। अगर दूरभाष की घंटी बजती, तो माँ के अलावा कोई अन्य भी होता था जो दूरभाष का उत्तर देने के लिए, दौड़ा चला आता था। और कुछ ब्लैंक कॉलस के बाद, यह समझ लिया जाता था कि दूरभाष आपके लिए था। निश्चित रूप से, अगर आप दूरभाष का जवाब देते तो हर किसी के चेहरे पर एक प्रश्न पूछे जाने वाले भाव होते- कौन हैं? यदि आप खाता (Accounts) या सांख्यिकी (Statistics) विषय का अध्यापन ले रहे होते हैं तो फोन के दूसरी तरफ से यह कहते हुए संदेश छोड़ा जाता था कि आज की कक्षा, इस विशेष समय पर है। और इस तरह कोई, अपने माता-पिता और घर के लोगों को चतुराई से मात देने की कोशिश करता।
पहले प्रेम की मासूमियत कुछ, खोए हुए युग जैसा प्रतीत होती है
अल्पकालिक रोमांस
एक महाविद्यालय का रोमांस एक वर्ष में 6-8 महीने तक चलता था। इसके समाप्त होने का एकमात्र कारण होता, लड़के को सेक्स चाहिए और लड़की राजी नहीं होती या दोनों में से कोई धोखा दे रहा होता और उनके बहुसंख्यक प्रेमी होते- उन दिनों बहुसंख्यक का मतलब था- दो। अधिकांश कॉलेज-रोमांस, कॉलेज के साथ ही समाप्त हो जाते थे और उनमें से कुछ ही शादी में तब्दील हो पाती थी, और वह भी तब, जब दोनों परिवारों द्वारा स्वीकृति मिलती। उस समय बहुत कम लड़के और लड़कियां अपनी शादी के लिए बोल पाते थे।
सेक्स आसान नहीं था, क्योंकि अगर रिश्ता आगे नहीं बढ़ता, तो क्या होता? एक लड़की के लिए उसकी मर्यादा सबसे प्रमुख थी। एक लड़की, एक लड़के के साथ बिस्तर में तभी जाती, जब वह 100% सुनिश्चित होती कि इस संबंध का परिणाम शादी होगा। अधिकांश लड़के, सिर्फ मस्ती करना चाहते थे। अगर लड़की के बारे में यह बात फैल जाती की, वो आसानी से सो जाती है, तो यह उसके विवाह बाजार को बहुत बुरी तरह प्रभावित करता। लड़की को विवाह की रात, कुंवारी होने की उम्मीद की जाती थी। उन दिनों विवाह करने का प्राथमिक कारण, सेक्स था।
मेरा एक मित्र और उसके दो चचेरे भाई, नेपियन सी रोड से एच.आर. महाविद्यालय तक कार चला कर जाते थे। इसमें, उसके दादाजी की सैर भी शामिल थी। उन दिनों निरोध का प्रचार रेडियो पर व्यापक रूप से हो रहा था- “पंद्रह पैसे में तीन… मर्दों के लिए निरोध”। एक दिन जब दादाजी गाड़ी चला रहे थे, उनके बगल वाली सीट पर उनका बड़ा पोता बैठा था- दादाजी ने पूछा, “यह निरोध क्या है?”। दादाजी, स्वयं 15 बच्चों के बाप थे। लड़के हँसे और कहा कि वे पता लगाएंगे और फिर उन्हें बताएंगे। निरोध ने सेक्स को आसान बना दिया था। 1980 के दशक तक, लड़कियां सेक्स करने के लिए अधिक खुली विचारों वाली थी- एक बार जब वो निर्णय ले लेती कि उन्हें इस लड़के से शादी करना चाहती है।
हिप्पी सभ्यता, ओशो और गर्भ निरोधकों की उपलब्धता ने सेक्स क्रांति ला दी। लड़कियां अब सेक्स को लेकर ज्यादा खुली विचारों की थी और बहुसंख्यक साथियों की खोज करने लगी।
अनुमित आयु
आज का डेटिंग परिदृश्य जटिल है और अनंत संभावना से भरा है। इसका कारण है, दर्जनों ऐप्स और वेबसाइटस। डेटिंग, प्रौद्योगिकी के माध्यम से होती है, जहां डेटिंग ऐप्स की भरमार है और ये सेक्स के दिशानिर्देशों पर आधारित होता है- टिंडर, बम्बल, ओकेक्यूपिड, हिंज, वू, आइज़ल, ग्रिंड्र, स्क्रूफ़, प्लैनेटेरोमो, ज़ो, जस्ट शी, फ़ेम… डेटिंग की धारणा, जिसका मजा पुराने दिनों में था, बहुत तेजी से पीछे छूट गया है। और आप अपने मोबाइल पर राइट स्वाइप करते हैं- हूकअप सभ्यता का प्रवेश द्वार खुल जाता है। ऑनलाइन डेटिंग का मतलब है, आपकी रूपरेखा (प्रोफाइल) कितनी आकर्षक है, आपका बायोडेटा कितना खुश करने वाला है। और सोशल मीडिया सुसंगतता (compatibility ) कितनी है। इन दिनों, लड़के और लड़कियां एक दूसरे से सम्मुख मिलने के बजाय, अपने फोन पर टेक्स्ट और चैटस करना पसंद करते हैं, और तब मिलते है जब उनमें से कोई एक, दूसरे से आकर्षित होता है। आभासी जीवन आगे बढ़ा, जबकि वास्तविक जीवन पीछे रह गया।
सहस्त्राब्दि, सेक्स के लिए खुले विचार वाले हैं और सेक्स के साथ प्रयोग करते हैं, जैसे कि संबंध लेबल की एक श्रेणी के साथ- मोनोगैमस( एक साथी), ओपन( सभी के लिए), पॉलीमोरस( बहुसंख्यक साथी), लॉन्ग-डिस्टेंस(लंबी दूरी), फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स(लाभ के लिए दोस्ती), और ऐसे कई। वे शादी करने के बजाय, लिव-इन में रहना ज्यादा पसंद करते हैं। लिव-इन में रहने का विचार यह है कि विवाह करने के पूर्व, अपने साथी को निकट से जाने। जब शादी की बात आती है तो बहुत सारे सहस्राब्दी, अपने मित्रों और करीबियों के माध्यम से नई रोमांटिक संभावनाओं को मिलना पसंद करते हैं; हालाँकि, ऐसे बहुत सारे लोग हैं, जिन्हें इन डेटिंग ऐप्स पर अपनी जोड़ी मिली।
निश्चित रूप से, प्रौद्योगिकी ने, सहमति की परिभाषा को बदल दी है और संबंधों को चाहे स्ट्रेट( अपने विपरित लिंग के साथ) हो या पैनसेक्सुअल(विपरित और समान सेक्स के साथ) सभी आयामों का जश्न मनाते है। शारीरिक या भावनात्मक संबंधों को बरकरार रखने की कोई सीमा नहीं हैं, और यह भी है कि कोई भी अपने कृत्यों के लिए जिम्मेदार नहीं होना चाहता है। वो प्यार जो एक दूसरे का हाथ पकड़ कर महसूस होता था, इस जटिल लापरवाह डेटिंग युग में, धुँधला होता प्रतीत हो रहा है। क्या यह डेटिंग सर्वनाश की शुरुआत है?