श्री शिवाजी प्रिपरेटरी मिलिट्री स्कूल (एस.एस.पी.एम.एस) के 1965 बैच के सतीश पुरी जी एक ऑपरेशन को याद करते हुए………….. एक पुल का निर्माण, कीर्तिमान समय में, वह भी दुश्मनों के हमलों के बीच
मैं, श्री शिवाजी प्रिपरेटरी मिलिट्री स्कूल (एस.एस.पी.एम.एस) के 1965 बैच से सतीश पुरी हूं। मुझे जून 1969 में कॉर्प्स ऑफ इंजीनियर्स (बॉम्बे सैपर्स) में नियुक्त किया गया था। कॉलेज ऑफ मिलिट्री इंजीनियरिंग में यंग ऑफिसर का कोर्स पूरा करने के बाद मुझे, नागालैंड के 268 आर्मी इंजीनियर रेजिमेंट में तैनात किया गया।
अक्टूबर 1971 में, पूर्वी पाकिस्तान में आसन्न संचालन के तैयारी के लिए, रेजिमेंट को पश्चिम बंगाल के कल्याणी, जो नदियों का क्षेत्र था, में स्थानांतरित कर दिया गया, जो टू कॉर्प्स का एकाग्रता वाला क्षेत्र था। हमारी रेजिमेंट को, अभिन्न इंजीनियर रेजिमेंट (102 इंजीनियर रेजिमेंट) के अलावा 9 इन्फैंट्री डिवीजन को आवंटित किया गया था।
इस संचालन के शुरू होने से पहले, आलमगंगा में, कोडिया नदी पर एक पुल, जो टू कॉर्प्स के आगे मुख्य धुरी पर था, जो भारी बाढ़ के कारण बह गया था। इस कारण से नदी की धारा दो भागों में विभाजित हो गई, जिसके बीच में एक अस्थिर द्वीप था। 102 इंजीनियर रेजिमेंट की फील्ड कंपनी ने इस अस्थिर द्वीप को रेत की बोरियों से निर्माण करने का प्रयास किया, लेकिन नदी की धारा के कारण वो बार-बार बह जाता था। फील्ड कंपनी को अपनी संबद्ध ब्रिगेड के साथ आगे बढ़ना था, इसलिए इस कार्य को, मेरी कंपनी (356 फील्ड कंपनी) को सौंप दिया गया। हमने उस अस्थिर द्वीप के निर्माण के प्रयास के बजाय, लकड़ियों के ढेर की सहायता से, एक 3-स्पैन तिरछे पुल का निर्माण करने का निर्णय लिया। स्थानीय पी.डब्ल्यू.डी (पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेन्ट) की मदद से लकड़ी के ढेर लगाए गए, फिर लकड़ी के ढेरों के नीचे concrete की चादर देर शाम तक बिछाई गई। हमने मिडल स्पैन शुरू करने के लिए एक अभिनव तकनीक का उपयोग करते हुए रातोंरात 3 स्पैन बेली पुल के निर्माण का शुभारंभ किया।
हमारी एक कंपनी (182 कंस्ट्रक्शन कंपनी) को बोयरा और उसके आस-पास क्रुप्पमन पुल के रख-रखाव का काम सौंपा गया था। इस पुल का सुदूरवर्ती हिस्सा दलदली था। और इसके निर्माण एवं रखरखाव और यहां से टैंकों, आर्टिलरी गनस और वाहनों को पार कराने के लिए, एक विशाल प्रयास की आवश्यकता थी। पुल के निर्माण कार्य को कुछ दिनों के लिए पाकिस्तान वायुसेना द्वारा भी रोका गया, लेकिन यह सब, तब खत्म हो गया, जब भारतीय वायुसेना द्वारा उनके विमानों को मार गिराया गया।
एक बार परिचालन शुरू होने के बाद, मुझे रेजिमेंट फील्ड इंजीनियर के रूप में नियुक्त किया गया। खुफिया अधिकारी और मुझे, बाधाओं, विशेष रूप से जल-बाधाओं के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए, अग्रणी ब्रिगेड के साथ आगे बढ़ने का काम सौंपा गया। मेरे साथ एक जीप, एक वाहन-चालक और एक रेडियो-संचालक था। मुझे, बाधाओं के प्रकार का आकलन करना था। वहां, स्पैन को लगाना और मापना था, उपयुक्त उपकरण तय करने थे, प्रारंभिक रचना और सही जानकारी वापस भेजनी थी, ताकि सही उपकरण वहां मंगवाया जा सके- और यह सब मुझे इस भीषण युद्ध क्षेत्र में ही करना था। झिंगरगाचा की ओर बढ़ते हुए, मुझे एक अचिह्नित माइनफील्ड के बीच से वाहन चलाना प़डा। जहां, बाद में मेरे पीछे आ रही फील्ड कंपनी में से एक की मृत्यु हो गई।
मेरी टिप्पणी के आधार पर, हमारे रेजिमेंट ने नभान में एक प्रमुख बेली पुल और झिंगरगाचा में एक क्रुप्पमन पुल का निर्माण किया। बाद में, क्रुप्पमन पुल को आगे चलकर टू -स्पैन बेली पुल में परिवर्तित कर दिया गया, जो वहाँ ध्वस्त पुल के मौजूदा बाँध की बजरी से बनाया गया था। मेरी रेजिमेंट ने, दुश्मन के आर्टिलरी हमलों के तहत कई लैंड माइन भंजन का कार्य किया।
पाकिस्तानी ब्रिगेड जेसोर को छोड़ कर चली गई और खुलना में, रक्षक सैन्य टुकड़ियों को स्थापित किया, जहां उत्तर की ओर से एक तरफ नदी के साथ संकीर्ण सड़क थी तो दूसरी तरफ एक नरम दलदली मिट्टी। यहां अभियंताओं ने टैंकों और आर्टिलरी गनस को आगे बढ़ाने के लिए बेड़े का निर्माण और संचालन किया। पाकिस्तानी सेना ने इसके तुरंत बाद आत्मसमर्पण कर दिया और मैं भाग्यशाली था कि खुलना में इस आत्मसमर्पण समारोह का साक्षी बना।
युद्ध समाप्त होने के बाद, हमारी रेजिमेंट वहां से चली गई, मुझे अपने जीप और एक सर्वेक्षक सैपर के साथ 6 हफ्ते तक वहीं रहना पड़ा, ताकि पूरे पश्चिमी बांग्लादेश से लेकर खुसतिया और खुलना तक का नक्शा खिंचा जा सके।