Friday, November 15, 2024
spot_img

फाफड़ा फाइलें: सद्गुरु के साथ नियुक्त मुलाकात

मीनू शाह, सद्गुरु  जग्गी वासुदेव जी के बारे में जांच करती हैं और सद्गुरु ने जो अपनी आँखों से कहा, उसपर मोहित हो जाती हैं

सद्गुरु जग्गी वासुदेव के बारे में जो मुझे सबसे अच्छा लगता है, वह है उनकी हास्य की समझ(सेंस ऑफ ह्यूमर), जबकि उनकी शॉल और पगड़ी, उनके बैठे हुए मुद्रा में हास्य कार्यक्रम (सिट-डाउन कॉमेडी शो), दूसरे स्थान पर आता है।

अब, जब आपका ध्यान मेरी ओर केंद्रित है– कृपया एक दूसरे के लिए कोई भी अपमानजनक भाषा का प्रयोग ना करें; ​​पूरे पैसिफिक एवं अटलांटिक और पूरे संयुक्त राज्य अमेरिका में फैले 1,000 झीलों के लोगों की, पिसते हुए दांत की आवाज सुन सकता हूं,  क्रोध से बाहर निकली हुई लाल आंखें और उनकी मुट्ठियां, जो मुझे जवाब देने के लिए तैयार है, देख सकता हूं। ठीक है, तुमसे जो सबसे अच्छा बन  पड़ता है, करो। मेरे कंधे चौड़े हैं और केवल जो बात मेरे लिए मायने रखती है वह है मेरे विचारों पर सद्गुरु की सोच।

गर्मियों में एक दिन, मैं अपने परिवार, जो सद्गुरु के उत्सुक शिष्य है,  के साथ सद्गुरु को मिलने ऑस्टिन ( ह्यूस्टन, टेक्सस से लगभग 165.3 मील की दूरी पर) के लिए निकली। उनके पास सद्गुरु के समारोह की एक अतिरिक्त टिकट थी; और शायद मेरे लिए, सद्गुरु से मिलने का एक द्वार खुल रहा था। यात्रा के दौरान, संलाप इस इरादे के साथ था कि मुझे, इस शताब्दी के मनुष्य रूपी भगवान के सामने लाया जाए, ताकि मैं उनके संभाषण को  सुन सकूँ। इस बीच, मैं सिर्फ उस प्यारे मैरियट होटल के कमरे और रात के स्वादिष्ट इटेलियन भोजन के बारे में ही सोच सकती थी। हाय! हम देरी से चल रहे थे और इसलिए, हमें एक सीधी रेखा बनाकर सीधे सम्मेलन  केंद्र में जाना था। गंभीर चेहरे वाले युवा तकनीकी विशेषज्ञों के झुंड, गलियों और आने जाने वाले  रास्ते पर इकठ्ठा हो गए थे, जो मुझे अल्फ्रेड टेनीसन की कविता- “द चार्ज ऑफ लाइट ब्रिगेड” के  सैनिकों की याद दिला रहे थे, सिवाय इसके कि हमारे घुड़सवार सैनिकों के पास तलवारों की बजाय कलम और पर्चियां थी। सम्मेलन केंद्र, लोगों से खचाखच भरी हुई थी और हमारी सीट, मध्य में तीसरी पंक्ति की रिंग साइड सीट (सामने की पंक्ति में बैठने की जगह, जो सबसे अच्छी जगह होती है) थी। मेरे चारों तरफ,  दर्शक एक विश्वास के साथ इस आशंका में खड़े थे कि  वो अगले 1.5 घंटों की अवधि में वो सब कुछ सीखेंगे, जो वो जीवन के बारे में जानना चाहते हैं।

मुझे संक्षिप्त रूप से याद है- एक मौन के संतोष के साथ  नमस्ते की मुद्रा में एक दिव्य  हाथ  दिखा और तब एक  लंबी सफेद दाढ़ी, पगड़ी में,  एक संत रूपी व्यक्ति का मंच आगमन हुआ और उनके चेहरे पर मुस्कान थी,  जो यह कह रही  थी – क्या ऐसा सचमुच है? और मैं गहरी नींद में चली गई। संत  ने कहा- मैं बस थक गई हूं और कुछ भी नहीं। मेरी पसलियों में कोहनी लगने से मैं जाग गई, और देखा कि बाएं, दाएं और मध्य सभी ओर से लोग मुझे ही  घूर रहे थे और मैं ये सोच कर शर्मिंदा हो गई कि शायद क्या मैं खर्राटे तो नहीं ले रही थी। लेकिन जब मैंने यह पूछा तो, मुझे  चुप  रहने को कहा  गया। मैंने मंच  की ओर  नज़र डाली तो देखा कि सद्गुरु की भेदने वाली आँखें सीधे मेरी आँखों में देख रही हो, अपने उभरे हुए होठों और प्रसिद्ध टेढ़ी मुस्कान के साथ यह कह रही हो- “अगर मैं तुम्हारी जगह होता तो मैं भी ऐसा ही करता”।

मुझे महसूस हुआ कि उस दिन मैंने उनसे संपर्क बना  लिया था। मैंने उनके वीडियो को देखना शुरू कर दिया, जो मेरी सोशल मीडिया साइटों पर अनजाने में ही पूरे तरीके से अनाधिकार प्रवेश कर लिया था। और मुझे, आप जैसे पाठकों और  सद्गुरु के कुछ प्रशंसकों के बारे में पता नहीं है, परंतु एक संदेश जो मुझे उनसे निरंतर रूप से  मिलता रहता है, चाहे मैं  उनसे कोई भी सवाल पूछूं:  “भगवान के लिए साहसी बनो। जब सारे प्रश्नों के उत्तर तुम्हारे अंदर ही है, तो अपने सभी उत्तरों के लिए  दूसरों पर निर्भर होना बंद करो। यौन संबंधों वाले प्रश्नों के पूछे जाने पर उनका अतिरंजीत जवाब होता है-  “मूर्खों, यह एक प्राकृतिक घटना है!” जब मैंने उनके  संभाषण को नियमित रूप से देखना जारी कर दिया, तो सबसे रोचक बात वह है-  जो वो अपनी आँखों से कहते हैं। मुझे ऐसा महसूस होता है कि सद्गुरु की अपनी ही अलग भाषा है: उदाहरण के लिए:

सहस्त्राब्दी(Millennial) (जुड़े हुए हाथ और दबी  हुई  आवाज  के साथ) : सद्गुरुजी, आप इस वायरस के  बारे में कैसे विस्तार में बताएंगे और आपको क्या लगता है, हम इस लॉकडाउन में कब तक रहेंगे?

सद्गुरु (एक आंतरिक आह के साथ, जैसे कि ऐसे शब्दों का चुनाव कर रहे हों, जो स्पष्ट रूप से अपमानजनक नहीं होगा): आप देखो: हम में से कोई भी नहीं जानता कि अभी से आगे आने वाले महीनों में क्या होगा,  लेकिन अगर आप सही सावधानी बरतते हैं, तो लॉकडाउन, बाद की तुलना में जल्द ही समाप्त हो जाएगा। (मुझे विश्वास है, जो सद्गुरु(अपनी भाषा  में) वास्तव में कहना चाहते थे,सब चू……मर गए, औलाद छोड़ गए)।”

ठीक है, ठीक है, आप में से कुछ लोग, जो Primate(adult  language) भाषाओं को समझते हैं, ऐसे महत्वहीन  बातों पर दुःखी ना हो, वो एक योगी है और उनके मन में या होठों पर ऐसे शब्द नहीं आएंगे या आएंगे? केवल वही हैं, जो इस प्रश्न का उत्तर देने में सक्षम है और अगर ब्रह्मांड  की इच्छा होगी तो एक दिन मैं ये आमने-सामने पूछूंगी।

अब, सद्गुरु की विचारधारा के बारे में मेरी एक विचारधारा है: अपने जीवन को अपनी क्षमता के अनुसार जीएं, किसी प्रश्न के उत्तर को आप शीघ्रता से ढूंढ रहे है और आप एक पुरुष हैं तो वह प्रश्न होना चाहिए- क्या विराट कोहली एक शतक बनाएगा  और  मेरी प्रेमिका/ पत्नी मुझे बिना किसी बाधा के पूरा मैच देखने देगी? या, यदि आप प्रेमिका/ पत्नी हैं तो: अगर बाई काम  करने नहीं आती है तो (उपरोक्त प्रेमी/ पति) क्या वह बर्तन  धोएगा। आप देखिए, ये लड़ाइयाँ, उन युद्धों की तुलना में अधिक आसानी से जीती जाती है, जिन्हें आप अपने मस्तिष्क पर जोर देते हैं-  जैसे कि, इस संसार, मेरी अंतरात्मा, एम.वी.ए(महागठबंधन) का क्या होने वाला है।  क्या, प्रियंका वाड्रा के बाल कभी उनके कंधों से आगे बढ़ेंगे, क्या मैं लॉटरी जीत पाऊंगी, इत्यादि, इत्यादि। चाहे बात कुछ भी हो, जीवन अपना रास्ता बना लेगी, तो हर पल का मजा लेना सीखे और स्वयं पर कठोर होना बंद करें, तो आपको सिर्फ खुशियां ही मिलेगी।

लेकिन, मेरी विनती है कि उपरोक्त बातों का गलत मतलब ना निकाले और इसे संभ्रांतवादी लड़की  सोनम अनिल कपूर आनंद आहूजा की बुद्धि, जो जीवन के शक्ति-शाखाओं के बारे मैं है (जिसकी हर एक शाखाओं एक दूसरे को नियमित करती है और समान शक्ति  प्रदान करती है), के साथ  समानता स्थापित ना करें। सोनम अनिल कपूर आनंद आहूजा  के अनुसार, वह अपने विश्वास में आनंदित है कि वो अपने परम कर्म के साथ पैदा हुई है। और उसके सिर का ऊपरी हिस्सा खाली है, जो खुद के बकवास पर विश्वास करते हुए खुशी से झूमती  है।

एक अंतिम नोट, मेरी सद्गुरु के बारे में क्या सोच है? सद्गुरु,  मुझे अंकल फ्रेड की याद दिलाते है, जो पी.जी वोडहाउस में इस चरित्र की भूमिका के लिए जाने जाते है,  जिसका जीवन की समस्याओं को हल करने का अपना ही   अपरंपरागत तरीका था।  इस क्रम में, शांति और सौहार्द स्थापित कर सके, अन्यथा दिन निरस होगा, ताकि वह बाकी की शाम का,  अपनी पसंदीदा शराब पीते हुए आनंद ले सके। क्यूं, क्यूं, क्यूं, मैं ऐसा क्यों कहूँगा ????? खैर, क्या सद्गुरु एक बाइकर नहीं है? वह खुशी से अपने जावास बाइक (मैसूर की स्थानीय मोटरबाइक कंपनी की बाइक, जो उनकी पसंदीदा है, ना कि  डुकाटी) पर सवार होकर, 100 मील प्रति घंटे की रफ्तार से जाते हैं, हवा उनके बलों से होकर गुजरती है। एक  भविष्य के  लिए बुद्धिमत्ता उनके दिमाग में इकठ्ठा होती है, जीवन के सांसारिक समस्याओं, जो उन मान्यताओं और  प्रथाओं, जिसे  वैज्ञानिक पद्धतियों पर आधारित माना जाता है, को हल  करने में अवश्य समय बिताए। ताकि, दिन के अंत  में थोड़ी  शांति और  सौहार्द्र  चुराया जा सके?-  मैं, आपको अमृत के गिलास का बहस के रूप में आत्मसमर्पण कर दूँगा।

Latest Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

0FansLike
2,116FollowersFollow
8,300SubscribersSubscribe

Latest Articles